मिल्कीपुर अयोध्या की मिल्कीपुर विधानसभा सीट... वो क्षेत्र जो कभी लेफ्ट यानि वामपंथी पार्टी CPI का गढ़ हुआ करता था, लेकिन राममंदिर की लहर ...
मिल्कीपुर अयोध्या की मिल्कीपुर विधानसभा सीट... वो क्षेत्र जो कभी लेफ्ट यानि वामपंथी पार्टी CPI का गढ़ हुआ करता था, लेकिन राममंदिर की लहर में इस सीट की सियासी सूरत 'लेफ्ट' से बदलकर 'राइट' हो गई।। हालांकि शुरूआत के समय यानि विधानसभा सीट के बनने के बाद 1969 में भारतीय जनसंघ के हरिनाथ तिवारी ने यहां से पहली जीत दर्ज की। फिर 1974 में कांग्रेस के धर्मचंद्र ने इस सीट पर कब्जा कर लिया। इसके बाद CPI के कद्दावर नेता मित्रसेन यादव ने 1977, 1980, 1985 और 1993 में जीत हासिल कर यहां लेफ्ट का खूंटा गाड़ दिया। यही मित्रसेन यादव सीपीआई के टिकट पर ही 1989 में लोकसभा भी पहुंचे। राममंदिर की लहर में लेफ्ट का किला नेस्तनाबूद लेकिन राममंदिर की लहर में लेफ्ट का किला तहस-नहस हो गया और 1991 में पहली बार बीजेपी ने मथुरा प्रसाद तिवारी को मैदान में उतार कर लेफ्ट के गढ़ को ढहा दिया। लेकिन इसके बाद का चुनाव और भी रोचक हो गया। 1996 में मैदान में फिर से पुराने खिलाड़ी खिलाड़ी मित्रसेन यादव उतरे, ये अलग बात थी कि इस बार हाथ में लेफ्ट नहीं बल्कि 'मुलायम झंडा' था। जैसा कि पहले से ही तय था, मित्रसेन को जनता ने अपना 'मित्र' चुन लिया। योगी के रथ ने फिर किया बीजेपी के लिए किले को फतह लेकिन 25 साल बाद समय फिर से करवट ले रहा था। 2017 में योगी के चेहरे पर यूपी की जनता ने भरोसा जताया और इसी का नतीजा था कि पिछले विधानसभा चुनाव में ढाई दशक बाद ही सही लेकिन बीजेपी के बाबा गोरखनाथ ने यहां फिर से भगवा झंडा बुलंद कर दिया। ताजा समीकरण मिल्कीपुर सीट यूपी की उन सीटों में से है जिसने सभी पार्टियों को मौका दिया, किसी को कई दफे तो किसी को एक ही बार। ताजा और वोटों के समीकरण की बात करें तो मिल्कीपुर में एससी-एसटी के साथ ओबीसी वोटर किसी पार्टी को जीत दिलाने में बड़ी भूमिका निभाते हैं। लेकिन मुस्लिम और सामान्य वर्ग के वोटर भी इस चुनाव में किसी का भी खेल बिगाड़ने की ताकत रखते हैं।
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