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साथ तो आ गए लेकिन शिवपाल और रामगोपाल के बीच क्‍या संतुलन बिठा पाएंगे अखिलेश?

लखनऊ करीब साढ़े पांच साल बाद सपा मुखिया , चाचा शिवपाल के घर पहुंचे तो शिवपाल बरामदे में खड़े होकर इंतजार कर रहे थे। दोनों नेताओं को साथ द...

लखनऊ करीब साढ़े पांच साल बाद सपा मुखिया , चाचा शिवपाल के घर पहुंचे तो शिवपाल बरामदे में खड़े होकर इंतजार कर रहे थे। दोनों नेताओं को साथ देख कार्यकर्ताओं ने नारा लगाया.. अखिलेश-शिवपाल जिंदाबाद। दरअसल, चाचा-भतीजे के साथ आने से उन समर्थकों को राह मिल गई है जो अखिलेश को हराना नहीं चाहते और शिवपाल को कमजोर होते नहीं देखना चाहते। हालांकि, गठबंधन की अभी बहुत सी गांठें खुलनी बाकी हैं। 2016 के आखिर में सपा में हुई फूट और सैफई परिवार के संघर्ष के पहले शिवपाल पारिवारिक और राजनीतिक तौर पर के सबसे खास लोगों में थे। अखिलेश के सीएम बनने के दौरान भी संगठन से जुड़े फैसलों से लेकर टिकट तक में शिवपाल का प्रभावी दखल होता था। अखिलेश-शिवपाल की राह अलग होने से पार्टी के कैडर और समर्थकों में भी दोराहे की स्थिति आई। 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रसपा 83 सीटों पर लड़ी थी और उसे कुल 3.47 लाख वोट ही हासिल हुए थे। हालांकि, फिरोजाबाद से सपा और सुलतानपुर सीट से उसके गठबंधन सहयोगी बसपा के हारने की एक बड़ी वजह शिवपाल की पार्टी प्रसपा थी। फिरोजाबाद से सपा महासचिव के बेटे अक्षय यादव करीब 18 हजार वोट से भाजपा उम्मीदवार से चुनाव हारे थे, जबकि शिवपाल को वहां करीब 92 हजार वोट मिले थे। इसी तरह सुलतानपुर में भी भाजपा महज 15 हजार वोट से जीती थी, जबकि, प्रसपा को 32 हजार वोट मिले थे। विधानसभा में मुकाबला और करीबी होता है। ऐसे में इस तरह वोटों का बिखराव सपा पर 2022 में भी भारी पड़ सकता है। दोनों दलों के साथ आने से यादव बेल्ट में खास तौर पर सपा और मजबूत होगी। सीटें और समायोजन की राह आसान नहीं शिवपाल के साथ सपा छोड़ने वाले कुछ विधायक और पूर्व विधायक भी थे। मसलन, फिरोजाबाद के सिरसा विधायक हरिओम यादव खुलकर शिवपाल के साथ खड़े हुए थे। पूर्व मंत्री शारदा प्रताप शुक्ला, शादाब फातिमा सहित अन्य चेहरे भी शिवपाल के साथ आए थे। प्रसपा के सपा में विलय की राह में इन चेहरों का समायोजन ही आड़े आ रहा था। गठबंधन के दौरान भी इनका समायोजन आसान नहीं होगा। क्योंकि, शिवपाल के खास समर्थक जिन सीटों पर दावा ठोंकेंगे, उस पर पहले से सपा के चेहरे भी दावेदारी कर रहे हैं। सवाल यह भी है कि सपा के गठबंधन का कुनबा बढ़ता जा रहा है। दूसरी ओर अखिलेश यादव कह चुके हैं कि सपा करीब 350 सीटों पर लड़ेगी। ऐसे में महज 52 सीटों पर आधा दर्जन गठबंधन सहयोगियों का समायोजन और उसमें प्रसपा के लिए 'सम्मानजनक' सीट का फॉर्म्यूला तलाशना भी टेढ़ी खीर होगा। पार्टी सूत्रों का कहना है कि दूसरे के सिंबल पर अपना उम्मीदवार उतारने के विकल्प से ही सपा रास्ता निकालने की तैयारी में है। परि'वॉर' की भी चुनौती सपा में शिवपाल के लिए सबसे बड़ी चुनौती रामगोपाल यादव थे। वह पार्टी के प्रधान राष्ट्रीय महासचिव हैं और 2016 के परि'वॉर' में भी अखिलेश के साथ खड़े थे। शिवपाल को सीटों के बंटवारे और समायोजन के लिए इस फैक्टर भी जूझना होगा। हाल में ही रामगोपाल यादव पर केंद्रित किताब में भी लेखकों के सुर शिवपाल को लेकर तीखे ही थे। यह भी अहम होगा कि से गठबंधन के साथ ही परिवार के एका की क्या और राहें भी खुलेंगी। मुलायम की छोटी बहू अपर्णा यादव के विधानसभा चुनाव में दावेदारी किस पार्टी से होगी, इस पर भी मंथन होना है।


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