चंडीगढ़ 20 जनवरी को एक टीवी चैनल पर दो नेताओं के बीच जमकर बहस हुई। यह बहस बेहद गर्म थी। दोनों जमकर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे थे। खासबात यह ...

चंडीगढ़ 20 जनवरी को एक टीवी चैनल पर दो नेताओं के बीच जमकर बहस हुई। यह बहस बेहद गर्म थी। दोनों जमकर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे थे। खासबात यह है कि दोनों नेता अलग-अलग पार्टियों के नहीं बल्कि एक ही पार्टी कांग्रेस के थे। इस बहस के बाद पंजाब कांग्रेस में फिर कलह सामने आई। ऑनलाइन देखी गई यह बहस पब्लिक के सामने तक आ पहुंची है। राणा गुरजीत ने अपने बेटे राणा इंदर प्रताप सिंह के लिए प्रचार कर रहे हैं। तकनीकी शिक्षा और औद्योगिक प्रशिक्षण मंत्री राणा गुरजीत दोआबा के इस इलाके को अपनी जागीर मानते हैं। राणा इंदर ने नवतेज सिंह चीमा पर आरोप लगाया कि लोग उनके भ्रष्टाचार से तंग आ गए हैं। ड्रग्स के मामले में भी उन्होंने कुछ नहीं किया। कांग्रेस ने साधी चुप्पी राणा गुरजीत सिंह पंजाब सरकार के सबसे अमीर मंत्री हैं। वह कैप्टन अमरिंदर सिंह के करीबी माने जाते हैं। बेटे के निर्दलीय चुनाव लड़ने और गुरजीत के उनके खुलकर प्रचार करने को लेकर कांग्रेस ने चुप्पी साध रखी है। एक परिवार में एक टिकट पंजाब में एक फैमिली से एक टिकट का फॉर्म्युला है। इसके तहत कांग्रेस ने राणा गुरजीत सिंह के बेटे को टिकट नहीं दिया। यहां तक कि मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के भाई को भी टिकट नहीं दिया गया। उत्तराखंड में फॉर्म्युला अलग उत्तराखंड में कांग्रेस ने बीजेपी छोड़कर 'हाथ' थामने वाले यशपाल आर्य और उनके बेटे संजीव दोनों को टिकट दिया है। पिता और बेटे को टिकट देने के बाद पंजाब में अंदरुनी कलह और तेज हो गई है। कहा जा रहा है कि पंजाब में कांग्रेस का खेल खराब हो सकता है। कांग्रेस में कलह इधर पंजाब के मंत्री राणा गुरजीत सिंह और सुल्तानपुर लोधी में नवतेज सिंह चीमा के बीच जमकर कलह हुई। दोनों प्रचार के लिए बुसोवाल गांव पहुंचे थे। राणा के बेटे इंदर प्रताप सिंह सुल्तानपुर लोधी विधानसभा सीट से निर्दलीय उम्मीदवार हैं क्योंकि कांग्रेस ने उन्हें टिकट देने से इनकार कर दिया था। राणा गुरजीत सिंह खुद कपूरथला से तीन बार विधायक रह चुके हैं। उन्हें कांग्रेस ने इस बार फिर इसी सीट से टिकट दिया है। राणा गुरजीत सिंह की सफाई राणा गुरजीत ने अपने बेटे का समर्थन करते हुए कहा कि उन्होंने निर्वाचन क्षेत्र का दौरा करने और चीमा के खिलाफ गुस्से का आकलन करने के बाद चुनाव लड़ने का फैसला किया। उन्होंने कहा कि यह विद्रोह नहीं है, एक बार जीतने के बाद राणा इंदर कांग्रेस का समर्थन करेंगे। सूत्रों की मानें तो उत्तराखंड में टिकट बंटवारे के बाद पंजाब में बगावत तेज हो सकती है। पहले से ही कांग्रेस में मची कलह में यह टिकट बंटवारा आग में घी का काम कर सकता है। कुछ गुपचुप सवाल उठा रहे हैं कि पंजाब में कांग्रेस ने दोहरा मापदंड क्यो अपनाया है।
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