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ग्राउंड रिपोर्ट: 'पारले जी के पैकेट जैसे खाद की बोरी छोटी हो गई, युवाओं को सांड हांकने का रोजगार'

त्रिवेदीगंज (बाराबंकी) से, उत्तर प्रदेश के चुनाव में आम लोगों के बीच आवारा पशुओं का मुद्दा बेहद महत्वपूर्ण बन गया है। शहरों में जमीनी हाला...

त्रिवेदीगंज (बाराबंकी) से,उत्तर प्रदेश के चुनाव में आम लोगों के बीच आवारा पशुओं का मुद्दा बेहद महत्वपूर्ण बन गया है। शहरों में जमीनी हालात से इतर गांव के लोगों के लिए खेती का बर्बाद होना प्रमुख समस्या बन गई है। यूपी के चुनाव () से पहले गांव के इलाकों में यूपी का फैसला () जानने नवभारत टाइम्स की लखनऊ के रास्ते अयोध्या के लिए निकली तो रास्ते में त्रिवेदीगंज में स्थानीय लोगों ने भी इसका जिक्र किया। त्रिवेदीगंज के पास जीवन होटल के किनारे कुछ स्थानीय लोगों ने नवभारत टाइम्स ऑनलाइन की चुनावी कवरेज टीम से बातचीत की। त्रिवेदीगंज () के पास बने जीवन होटल पर बातचीत शुरू हुई तो स्थानीय प्रधान श्याम बहादुर उर्फ छुटकन सिंह सरकार से नाराज दिखे। उन्होंने बातचीत में कहा कि खेतों में दिन भर किसान अपनी फसल रखाने (रखवाली करने) को मजबूर है। सारे साल फसल तैयार करने और उसकी देखभाल करने में किसान की हालत खराब है। हालत ये है कि तैयार फसल के खेत में अगर नीलगाय का झुंड कूद जाए तो पूरा का पूरा खेत खराब होने में कुछ मिनट ही लगते हैं। 'घर लौटे युवा सांड भगाने की नौकरी मिली' त्रिवेदीगंज के पंकज रावत कोरोना के वक्त घर लौटने की बात का जिक्र करते हुए कहते हैं कि जो लोग दिल्ली-मुंबई से वापस लौटे उन्हें कोई खास काम नहीं मिला। कहने को तो सरकार भले 2 करोड़ रोजगार की बात कह दे, लेकिन हकीकत ये है कि घर लौटे युवाओं को इस समय खेत से सांड हांकने का ही रोजगार मिला है। घर लौटे तमाम लड़के आजकल दिन भर अपने खेत की रखवाली कर रहे ताकि उसमें कोई आवारा जानवर ना घुसे। 'लोग वापस अपने शहर लौट रहे हैं' पंकज रावत कहते हैं कि कोरोना काल में कई लोगों की नौकरी बड़े शहरों में चली गई। ये वो लोग थे, जिन्होंने या तो डर से अपना काम छोड़ दिया या निकाल दिए गए। कोरोना के लॉकडाउन तक तो रखे पैसे इस्तेमाल कर लिए, लेकिन अब नौकरी चाहिए ही थी। हालत ये है कि यूपी में काम नहीं मिला तो तमाम लोग वापस वहीं दिल्ली और मुंबई लौट गए। 'धान बेचने के लिए लाइन, खाद की बोरी में चोरी' त्रिवेदीगंज में दुकान चलाने वाले कृष्णमोहन मिश्रा कहते हैं कि वो स्थानीय विधायक के काम से खुश नहीं हैं। धान के क्रय केंद्रों पर धान की तौल नहीं हो पा रही। किसान वहां ट्रॉली लेकर जाते हैं तो उसकी देखभाल और लाइन में रात-रात भर ट्रॉली के नीचे पड़े रहते हैं। जब इंतजार के बाद धान नहीं बिकता तो बाजार में कम कीमत पर फसल बेचकर चले आते हैं। कृष्ण मोहन के साथ मौजूद स्थानीय नेता गौतम रावत कहते हैं कि खाद मिलने में देरी यहां की प्रमुख समस्या है। खाद की बोरी छोटी कर दी गई है और अब 1400 रुपये में मिल रही है। हर बोरी से 5 किलो खाद कम हो गई है और उसके लिए भी लाइन लगानी पड़ती है। ऐसे में अगर किसान सरकार से नाराज ना हो तो क्या ही करे।


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