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एक की हिम्मत की मिसाल, दूसरे की सादगी...मणिपुर चुनाव में उतरे ये दो चेहरे चर्चा में

इंफाल: चुनाव में अक्सर यह देखा जाता है कि पार्टियों और मुद्दों से अलग कुछ ऐसे चेहरे होते हैं, जो अपने आप में चर्चा का सबब बन जाते हैं। ऐस...

इंफाल: चुनाव में अक्सर यह देखा जाता है कि पार्टियों और मुद्दों से अलग कुछ ऐसे चेहरे होते हैं, जो अपने आप में चर्चा का सबब बन जाते हैं। ऐसा ही मणिपुर में भी हो रहा है। वहां दो उम्मीदवार- बृंदा थौनाओजम और निंगथौजम पोपिलाल अलग-अलग वजहों से चर्चा में हैं। उनकी जीत-हार की संभावनाओं से ज्यादा उनके बैकग्राउंड की कहानियां सुनी-सुनाई जा रही हैं। दोनों के बारे में बता रहे हैं नदीम : 'लेडी सिंघम' कही जाती थीं बृंदा यास्कुल विधानसभा क्षेत्र से 43 साल की बृंदा थौनाओजम चुनाव लड़ रही हैं। बृंदा मणिपुर पुलिस सेवा की अधिकारी रही हैं और सेवाकाल में 'लेडी सिंघम' के नाम से जानी जाती रही हैं। 'लेडी सिंघम' उन्हें इसलिए कहा जाता रहा है कि वह किसी भी तरह के राजनीतिक दबाव में नहीं आती थीं और अक्सर सत्ता के साथ उनका टकराव चलता रहता था। उनसे जुड़ा सबसे दिलचस्प किस्सा यह सुनाया जाता है कि उन्होंने कुछ साल पहले ड्रग्स तस्करी के एक गिरोह पर हाथ डाला। जिन लोगों को पकड़ा, उनमें सत्तारूढ़ दल के नेता भी शामिल थे। उन लोगों को छोड़ देने के लिए उनके पास राज्य सत्ता के सर्वोच्च स्तर से फोन किया गया लेकिन उन्होंने छोड़ने से इनकार कर दिया। उन्हें इसका नतीजा भुगतने की धमकी मिली, लेकिन वह नहीं झुकीं। बाद में जब सारे अभियुक्त अदालत से रिहा हो गए तो बृंदा ने अपने वीरता पुरस्कार लौटा दिए। उन्हें अदालत के फैसले पर उंगली उठाने के लिए अदालत की अवमानना का भी सामना करना पड़ा। जेडीयू के टिकट पर लड़ रहीं चुनाव सेवाकाल में उनके साथ एक और विवाद जुड़ा रहा। उनके ससुर राज्य के एक विद्रोही शस्त्र समूह के नेता हैं। अंतत: 2021 में बृंदा ने नौकरी छोड़कर राजनीति में आने का फैसला किया। वह तीन बच्चों की मां हैं और उनके पति सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं। कहा जाता है कि सेवाकाल में जिस बीजेपी के साथ उनका टकराव चल रहा था, राजनीति में आने पर उसी से टिकट को लेकर वह जोड़ तोड़ करती देखी गईं। उनकी कुछ बीजेपी नेताओं से मुलाकात की चर्चा भी हुई, लेकिन बीजेपी उम्मीदवारों की लिस्ट में उनका नाम नहीं आया तो उन्होंने नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू से टिकट ले लिया। जेडीयू वैसे तो एनडीए का ही हिस्सा है लेकिन मणिपुर में बीजेपी के खिलाफ चुनाव लड़ रहा है। मणिपुर को नशे से मुक्त करने की चाहत बृंदा इस बात से इनकार करती हैं कि उन्होंने नौकरी से इस्तीफा देने के बाद बीजेपी से टिकट पाने के लिए किसी तरह की जोड़-तोड़ की। वह कहती हैं कि उनका चुनाव लड़ना तय था। जेडीयू ने उन्हें टिकट का ऑफर दिया, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। बृंदा कहती हैं कि राजनीति में वह मणिपुर को नशे से मुक्ति दिलाने के लिए आई हैं। सोशल मीडिया पर बृंदा की बड़ी 'फैन फॉलोइंग' है। वैसे यह सब उनके लिए राजनीति में कितना काम आता है, यह तो 10 मार्च को ही पता चलेगा। खाली जेब मैदान उतरे में पोपिलाल राजनीति में दांव लगाने ही पड़ते हैं। शरद पवार ने भी मणिपुर की सेकमाई विधानसभा सीट पर एक ऐसा ही दांव लगा दिया है। वैसे तो सेकमाई सीट की खास बात यह है कि 60 सीटों वाले राज्य की यह अकेली ऐसी सीट है, जो अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। लेकिन यह सीट इस बार इस वजह से चर्चा में है कि शरद पवार की पार्टी ने यहां पर 26 साल के एक ऐसे नौजवान को टिकट दे दिया है जिसके पास न कोई बैंक बैलेंस है, न ही कैश इन हैंड और न ही किसी तरह की कोई चल-अचल संपत्ति। यह बात उसने नॉमिनेशन पेपर के साथ दाखिल किए गए शपथपत्र में कही है। उसके इसी शपथपत्र की वजह से सेकमाई सीट और वह नौजवान चर्चा का सबब बन गया है। इस युवक का नाम है- निंगथौजम पोपिलाल। राज्य के सबसे कम उम्र के उम्मीदवार पोपिलाल ग्रेजुएट हैं और अपनी अनुसूचित जाति की कम्युनिटी के बीच काम करने के लिए जाने जाते हैं। वह राज्य के सबसे कम उम्र के उम्मीदवार हैं। उनके जीविका चलाने का जरिया ट्यूशन है। हमने उनसे जानना चाहा कि क्या यह सच है कि उनके पास एक भी रुपया नहीं है, (जैसा कि उन्होंने अपने शपथपत्र में कहा है) तो उनका जवाब था, 'बिल्कुल, जिस दिन मैंने अपना नॉमिनेशन किया, उस दिन मेरे पास एक भी पैसा नहीं था और न आज है। नॉमिनेशन फीस के लिए कम्युनिटी और पार्टी के लोगों ने मेरा सहयोग किया है। मैं बिना पैसे के चुनाव लड़कर यह दिखाना चाहता हूं कि बिना पैसे के भी चुनाव लड़ा जा सकता है और अब वोटर्स को यह दिखाना होगा कि वह ऐसा भी उम्मीदवार चुन सकते हैं, जिसके पास भले एक फूटी कौड़ी न हो, लेकिन जो रात-दिन उनके साथ खड़ा रहता हो।' करोड़पति और लखपति प्रत्याशियों से मुकाबला यह दिलचस्प है कि उनका मुकाबला करोड़पति और लखपति उम्मीदवारों से हो रहा है। यह सीट पिछली बार बीजेपी ने जीती थी। पोपिलाल पहले कांग्रेस से टिकट लेकर लड़ना चाहते थे लेकिन कांग्रेस सत्ता में वापसी की लड़ाई लड़ रही है। इसलिए वह कोई प्रयोग करने की पक्षधर नहीं थी। सो उसने पोपिलाल को टिकट देने से इनकार कर दिया। एनसीपी के स्थानीय नेताओं ने यह बात पार्टी चीफ शरद पवार तक पहुंचाई। उन्हें पोपिलाल भा गए। देखना दिलचस्प होगा कि पोपिलाल की सादगी वोटरों के मन को किस हद तक भाती है।


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