मनुष्य जीवन भर केवल धन कमाने के चक्कर में लगा रहता है। पूरा समय व्यापार में केवल उसे पैसा ही दिखाई देता है। मनुष्य केवल यही सोचता है कि ग्र...

मनुष्य जीवन भर केवल धन कमाने के चक्कर में लगा रहता है। पूरा समय व्यापार में केवल उसे पैसा ही दिखाई देता है। मनुष्य केवल यही सोचता है कि ग्राहक को कैसे लूटा जाए। मनुष्य को यह भी नहीं दिखाई देता है कि सही क्या है और गलत क्या है।वह केवल धन को ही अपना सबकुछ समझ बैठता है।
धन कमाते-कमाते जीवन कब पूरा हो जाता है उसे पता ही नहीं चलता। यह बात नरबतपुर में आयोजित नौ दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन शनिवार काे कथावाचक उमेश जी महाराज ने कही।
कर्म श्रेष्ठ होंगे तो जीवन भी श्रेष्ठ होगा : कथावाचक ने आगे कहा धन को अर्जित करने के कालखंड में यदि मनुष्य यह सोच ले कि मुझे जीवन में पाप व पुण्य को भी समझना है तो वह लूट खसोट बंद कर देगा। नीतिगत व्यापार की ओर अपना ध्यान बढ़ाना प्रांरभ कर देगा।
आवश्यकता से अधिक यदि व्यापार में लूटने का काम किया तो स्वर्ग व नरक दोनों को उसे यहीं पर भोगना होगा। कथा का सार हमें यह शिक्षा देता है कि मनुष्य के कर्म यदि श्रेष्ठ होंगे तो जीवन का हर क्षण श्रेष्ठ होगा।
धन अर्जित के साथ ईश्वर की भक्ति भी जरूरी : जीवन में धन कमाना ही श्रेष्ठकर नहीं है। धन को अर्जित करने के साथ-साथ ईश्वर की आराधना व भक्ति भी करना होगी तब जाकर ईश्वर के स्वर्ग व मोक्ष दोनों के द्वार हम सब मनुष्यों के लिए खुले रहेंगे।
मनुष्य के श्रेष्ठ कर्म ही उसे स्वर्ग के रास्ते की ओर ले जाते हैं। ध्रुव चरित्र, प्रह्लाद चरित्र व हिरण्यकश्यप के वध का प्रसंग भी सुनाया। महावीर जयंती के शुभ अवसर पर नरबतपुर महावीर मंदिर में हर साल की तरह इस साल भी भगवान की कथा का आयोजन किया गया।श्रद्धालु प्रतिदिन कथा स्थल पर पहुंच कथा का लाभ ले रहे हैं।
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