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बैंड-बाजा और बुक...नक्सलियों के 'गढ़' में प्रिंसिपल ने किया ऐसा काम, लोग कर रहे सलाम

गढ़चिरौली गुब्बारे, गुलदस्ते, चॉकलेट का डिब्बा और ढोल बजाते कुछ लोगों को देखकर किसी को भी लगेगा कि यहां शादी की तैयारी हो रही है। लेकिन य...

गढ़चिरौली गुब्बारे, गुलदस्ते, चॉकलेट का डिब्बा और ढोल बजाते कुछ लोगों को देखकर किसी को भी लगेगा कि यहां शादी की तैयारी हो रही है। लेकिन यह जुलूस 6 साल के हरीश वासुदेव हबका के स्कूल में पहले दिन को सेलिब्रेट करने के लिए निकाला गया है। महाराष्ट्र के सुदूर गढ़चिरौली के कोयनगुडा गांव निवासी हरीश ने जिला पंचायत स्कूल में दाखिला लिया था लेकिन कोविड लॉकडाउन के चलते स्कूल-कॉलेज सब बंद हैं तो ऐसे में स्कूल खुद चलकर उनके पास आ गया है। बच्चों में स्कूल के प्रति दिलचस्पी जगाने के लिए यह अनोखा आइडिया स्कूल के प्रिसिंपल विनीत पदमावर का है। उन्होंने बैंड बाजा स्टाइल में स्कूल के सभी 6 नए दाखिलों के घर जाने का फैसला लिया है। वह कहते हैं, 'अगर बच्चे स्कूल नहीं जा सकते तो स्कूल खुद चलकर उनके पास आएगा।' दरअसल कोयनगुड़ा गांव नक्सल प्रभावित तालुक भमरागढ़ में स्थित है। सुविधाओं से वंचित और सुरक्षा के लिहाज से संवेदनशील होने के चलते इन इलाकों में बच्चों की शिक्षा हमेशा चुनौती बनी रहती है। सुरक्षा के लिहाज से संवेदनशील इलाका हरीश के घर बैंड बाजा लेकर पहुंची स्पेशल वेलकम पार्टी ने उसे कई सारे गिफ्ट्स भी दिए। पदमावर कहते हैं, 'बच्चों को गिफ्ट पसंद हैं। मनपसंद गिफ्ट्स के अलावा हम बच्चों को किताबें भी भेंट करते हैं।' नक्सलियों की मौजूदगी के कारण भमरागढ़ तालुक सुरक्षा के लिहाज से संवेदनशील इलाका है। मॉनसून के वक्त पूरा तालुक जिले के बाकी हिस्से से पूरी तरह कट जाता है। परलाकोटा नदी में जलस्तर बढ़ने के कारण यहां स्थित एक मात्र पुल हफ्तों तक पानी में डूबा रहता है। रिमोट इलाके में ऑनलाइन क्लास मुमकिन नहींइसके अलावा यहां सुरक्षाबलों और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ भी बहुत आम है। पदमावर कहते हैं, 'यहां शिक्षा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। बच्चों को रचनात्मक माहौल में व्यस्त रखना पड़ता है ताकि कोई दूसरी विचारधारा उन्हें अपने प्रभाव में न ले सके। स्कूल बंद होने से बच्चों की पढ़ाई में काफी गहरा असर पड़ा है। रिमोट इलाके में ऑनलाइन क्लास भी मुमकिन नहीं है। कुछ जगहों पर तो मोबाइल नेटवर्क भी ठीक से नहीं आते। साथ ही उनकी आर्थिक स्थिति ऑनलाइन क्लास के लिए इंतजाम करने के अनुकूल नहीं है।' बच्चों के घर जाकर क्लास ले रहे हैं टीचर पिछले साल जब शहरी छात्रों की ऑनलाइन क्लास शुरू हुई तो सुदूर गांवों के बच्चों का भविष्य अंधकार में डूब गया था। तब तालुक में कई स्कूलटीचर ने आगे आकर जिम्मेदारी उठाई और बच्चों के घर जाकर उन्हें पढ़ाना शुरू किया। वे हफ्ते में एक बार गांव जाते हैं और बच्चों को पढ़ाते हैं। इस दौरान वे उबड़-खाबड़ रास्तों में भी मोटरसाइकल चलाते हैं ताकि एक भी बच्चा छूटने न पाए।


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