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वोटरों के मताधिकार का हनन नहीं होने दे सकते, बिहार में 1989 चुनाव के बूथ लुटेरों को सजा पर सुप्रीम कोर्ट की बड़ी टिप्पणी

नई दिल्ली ने बिहार में साल 1989 में हुए आम चुनाव के दौरान बूथ लूटने के एक मामले में दोष सिद्ध होने और सजा के खिलाफ दायर एक अपील को खारिज ...

नई दिल्ली ने बिहार में साल 1989 में हुए आम चुनाव के दौरान बूथ लूटने के एक मामले में दोष सिद्ध होने और सजा के खिलाफ दायर एक अपील को खारिज कर दिया है। 32 साल पहले हुए लोकसभा चुनाव के दौरान एक बूथ पर कब्जा करने के प्रयास के लिए आठ लोगों को छह महीने की सजा सुनाई गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव लोकतंत्र के लिए जरूरी है और लोगों को वोट के माध्यम से अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार है। जानिए क्या था पूरा मामलाजस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और एमआर शाह की बेंच ने कहा कि किसी को भी बूथ कैप्चरिंग या किसी अन्य तरीके से वोटिंग के अधिकार को कम करने या हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। पूरा मामला 26 नवंबर 1989 को सामने आया था जब हथियारबंद बदमाशों ने तत्कालीन अविभाजित बिहार के पाटन में एक मतदान केंद्र पर धावा बोल दिया था। इस दौरान उन्होंने एक बीजेपी कार्यकर्ता से मतदाता पर्ची छीन ली थी। उसी की शिकायत पर पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज की थी। जिसमें निचली अदालत ने करीब एक दशक बाद आठ लोगों को अपराध का दोषी ठहराया और उन्हें छह महीने के कैद की सजा दी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा- स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव लोकतंत्र के लिए जरूरीइसी सजा के खिलाफ अपील पर 19 साल बाद झारखंड हाईकोर्ट ने फैसला बरकरार रखा था। जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जहां आठ लोगों की सजा को अंतिम रूप देने में तीन साल और लग गए। फैसला लिखते हुए जस्टिस शाह ने पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज मामले में सुप्रीम कोर्ट के 2013 के फैसले का उल्लेख किया। पीठ ने अपने उस फैसले का हवाला देते हुए कहा कि मतदान की स्वतंत्रता अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का एक हिस्सा है। इस मामले में यह स्पष्ट होता है कि उस समय सभी आरोपी गैर-कानूनी तरीके से वहां एकत्र हुए थे, जिनका उद्देश्य भी समान था। उनकी योजना मतदाता सूची को छीनने और फर्जी वोट डालने की थी और इसके लिए उन्हें छह महीने की कैद की सजा सुनाई गई थी। 1989 के बूथ कैप्चरिंग मामले में हुई सुनवाईसुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए वोट डालने में गोपनीयता जरूरी है, जिससे मतदाता डर के बिना अपना वोट डाल सकें। पीठ ने कहा कि लोकतंत्र और स्वतंत्र चुनाव संविधान के बुनियादी ढांचे का हिस्सा हैं। ऐसे में बूथ पर कब्जा करने या फिर फर्जी मतदान जैसे किसी भी प्रयास से सख्ती से निपटा जाना चाहिए। किसी को भी स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के अधिकार को कमजोर करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। पीठ ने ये भी कहा कि इस मामले में राज्य सरकार की ओर से छह महीने के साधारण कारावास को लागू करने के खिलाफ कोई अपील दायर नहीं की गई है, इसलिए पीठ ने सजा पर हस्तक्षेप नहीं किया।


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