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जीप वाला 'परमवीर'...जिसने मैदान-ए-जंग में 8 पाकिस्तानी टैंकों की बना दी कब्रगाह

नई दिल्ली पाकिस्तान के साथ 1947-49 के दौरान कश्मीर में हुई जंग में कई भारतीय सैनिकों को शहादत देनी पड़ी थी। पाकिस्तान इस मुगालते में था क...

नई दिल्ली पाकिस्तान के साथ 1947-49 के दौरान कश्मीर में हुई जंग में कई भारतीय सैनिकों को शहादत देनी पड़ी थी। पाकिस्तान इस मुगालते में था कि उसके मुकाबले भारत की सैन्य क्षमता काफी कमजोर है। पाकिस्तान ने इसी गलतफहमी में 1965 में एक बार फिर जंग छेड़ दी। यह युद्ध भारत के एक 'परमवीर' की जांबाजी के लिए भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया। जी हां, वह रणबांकुरा जिसने जीप पर बैठकर पाकिस्तान के एक-दो नहीं आठ-आठ पैटन टैंकों को बर्बाद कर दिया। अब्दुल हमीद की वीरता की इसलिए भी मिसाल दी जाती है, क्योंकि उस वक्त पैटन टैंकों को अजेय माना जाता था। हमीद ने मैदान-ए-जंग में पाक पैटन टैंकों की कब्रगाह बना दी। युद्धक्षेत्र में ही 10 सितंबर, 1965 को अब्दुल हमीद शहीद हुए, लेकिन तब तक वह अप्रतिम शौर्य की अविस्मरणीय दास्तां लिख चुके थे। 1 जुलाई 1933 को यूपी के गाजीपुर में जन्म इससे पहले कि अब्दुल हमीद की जांबाजी का किस्सा याद करें, आइए उनके निजी जीवन के बारे में जानते हैं। यूपी के गाजीपुर जिले के धरमपुर गांव में 1 जुलाई, 1933 को हमीद का जन्म हुआ था। उनके पिता मोहम्मद उस्मान सिलाई का काम करते थे, लेकिन हमीद का मन इस काम में नहीं लगता था। उनकी दिलचस्पी लाठी चलाना, कुश्ती का अभ्यास करना, नदी पार करना, गुलेल से निशाना लगाना जैसी चीजों में थी। इसके साथ ही लोगों की मदद के लिए भी वह बढ़-चढ़कर आगे आते थे। 20 साल में पहनी वर्दी, छुट्टी से पहले लौटे फर्ज पर एक किस्सा यह भी पता चलता है कि एक बार बाढ़ के पानी में डूब रही दो लड़कियों की उन्होंने जान बचाई थी। 20 साल की उम्र में अब्दुल हमीद ने वाराणसी में भारतीय सेना की वर्दी पहनी। उन्हें ट्रेनिंग के बाद 1955 में 4 ग्रेनेडियर्स में पोस्टिंग मिली। 1965 में जब भारत-पाकिस्तान युद्ध की घड़ी करीब आ रही थी, उस वक्त वह छुट्टी पर अपने घर गए थे। लेकिन पाक से तनाव बढ़ने के बीच उन्हें वापस आने का आदेश मिला। ऐसा भी कहा जाता है कि बिस्तरबंद बांधते वक्त उसकी रस्सी टूट गई थी। इस पर उनकी पत्नी रसूलन बीबी ने अपशकुन माना। हमीद को उन्होंने रोकने की कोशिश की, लेकिन हमीद के लिए वतन की सेवा और अपना फर्ज सबसे ऊपर था। जीप से ध्वस्त कर दिए 'अपराजेय' पैटन टैंक वीर अब्दुल हमीद पंजाब के तरनतारण जिले के खेमकरण सेक्टर में पोस्टेड थे। पाकिस्तान ने उस समय के अमेरिकन पैटन टैंकों से खेमकरण सेक्टर के असल उताड़ गांव पर हमला कर दिया। उस वक्त ये टैंक अपराजेय माने जाते थे। रिपोर्ट्स के मुताबिक, अब्दुल हमीद की जीप 8 सितंबर 1965 को सुबह 9 बजे चीमा गांव के बाहरी इलाके में गन्ने के खेतों से गुजर रही थी। वह जीप में ड्राइवर के बगल वाली सीट पर बैठे थे। उन्हें दूर से टैंक के आने की आवाज सुनाई दी। कुछ देर बाद उन्हें टैंक दिख भी गए। वह टैंकों के अपनी रिकॉयलेस गन की रेंज में आने का इंतजार करने लगे और गन्नों की आड़ का फायदा उठाते हुए फायर कर दिया। एक बार में 4 टैंक उड़ाए, 8वां टैंक उड़ाते हुए शहीद अब्दुल हमीद के साथी बताते हैं कि उन्होंने एक बार में 4 टैंक उड़ा दिए थे। उनके 4 टैंक उड़ाने की खबर 9 सितंबर को आर्मी हेडक्वॉर्टर्स में पहुंच गई थी। उनको परमवीर चक्र देने की सिफारिश भेज दी गई थी। इसके बाद कुछ ऑफिसर्स ने बताया कि 10 सितंबर को उन्होंने 3 और टैंक नष्ट कर दिए थे। जब उन्होंने एक और टैंक को निशाना बनाया तो एक पाकिस्तानी सैनिक की नजर उन पर पड़ गई। दोनों तरफ से फायर हुए। पाकिस्तानी टैंक तो नष्ट हो गया, लेकिन अब्दुल हमीद की जीप के भी परखच्चे उड़ गए। वतन की हिफाजत के लिए 'परमवीर' हमीद कुर्बान हो गए। परमवीर चक्र से सम्मानित हुए अब्दुल हमीद अब्दुल हमीद को उनके अदम्य साहस और वीरता के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। 28 जनवरी, 2000 को भारतीय डाक विभाग ने वीरता पुरस्कार विजेताओं के सम्मान में पांच डाक टिकटों के सेट में 3 रुपये का एक डाक टिकट जारी किया। इस डाक टिकट पर रिकॉयलेस राइफल से गोली चलाते हुए जीप पर सवार वीर अब्दुल हमीद की तस्वीर बनी हुई है। उनकी बहादुरी को इन अल्फाजों के साथ सलाम- सर झुके बस उस शहादत में, जो शहीद हुए हमारी हिफाजत में।


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