चंडीगढ़ आपको ताज्जुब होगा कि लगभग 30 फीट ऊंचा टावर अगर गायब हो जाए तो हर कोई इसे नोटिस करेगा, लेकिन हरियाणा सरकार को इसकी परवाह नहीं है। ...

चंडीगढ़ आपको ताज्जुब होगा कि लगभग 30 फीट ऊंचा टावर अगर गायब हो जाए तो हर कोई इसे नोटिस करेगा, लेकिन हरियाणा सरकार को इसकी परवाह नहीं है। सरकार ने फरीदाबाद के शाहबाद (कुरुक्षेत्र) और मुजेसर राजस्व क्षेत्र में स्थित ऐतिहासिक महत्व रखने वाली संरक्षित स्मारक (मील टावर) की जमीनें बेच डालीं। हैरानी की बात यह है कि कुछ लोग शेरशाह सूरी की मीनारें ही चुरा ले गए, किसी को भनक तक नहीं लगी। पानीपत निवासी अमित कुमार को एक आरटीआई में इससे संबंधित जवाब मिला। अमित ने खुलासा किया कि हरियाणा सरकार ने ऐतिहासिक महत्व के इन स्मारकों के महत्व से अनजान, जमीन को बेच दिया जहां इनका निर्माण किया गया था। पुरातत्व विभाग को जबाव तक नहीं दिया साइटों का पता लगाने के लिए कोई प्रयास नहीं करने के अलावा, हरियाणा सरकार ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एनडब्ल्यूआर) के किए गए प्रश्नों का जवाब देने की भी जहमत नहीं उठाई। मुजेसर माइल टावर के मामले में पुलिस भी एएसआई की ओर से तत्कालीन जिला एसपी से की गई शिकायत पर कार्रवाई करने में विफल रही है। 1914 में घोषित हुईं थीं संरक्षित स्मारक एएसआई के अधिकारियों के अनुसार, राज्य भर में कुल 49 ऐसी कोस मीनारों में से अब सिर्फ 8 बची हैं। मार्च 1914 में कोस मीनार को ऐतिहासिक महत्व का संरक्षित स्मारक घोषित किया गया था। जवाब में बताया हरियाणा सरकार ने बेच दी जमीन आरटीआई कार्यकर्ता ने शाहबाद और मुजेसर में लापता कोस मीनार और अब तक की गई कार्रवाई के बारे में एएसआई और हरियाणा सरकार के बीच हुए पत्राचार का विवरण मांगा था। अपने जवाब में एएसआई ने पुष्टि की है कि दो कोस मीनारें गायब हैं और पुरातत्वविद उनकी साइटों का पता लगाने में विफल रहे हैं। हालांकि, जवाब में इस बात का ब्योरा दिया गया है कि हरियाणा सरकार ने कोस मीनार स्थित जमीन को समय-समय पर कैसे हस्तांतरित किया? 1971 में भी किया आवंटन जवाब में शाहबाद कोस मीनार का उल्लेख करते हुए कहा गया कि दिसम्बर 1914 की अधिसूचना के अनुसार उक्त भूमि एक वली मोहम्मद को आवंटित की गई थी। बंटवारे के बाद 1971 में एक जीवन लाल को एक बीघा छह बिस्वा का भूखंड आवंटित किया गया था। स्थानीय लोगों से प्राप्त रेकॉर्ड और जानकारी के अनुसार, कोस मीनार 1955 तक थी। बाद में तत्कालीन हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण (हुडा) ने भूमि का अधिग्रहण किया था) और भवनों, आवासीय के साथ-साथ वाणिज्यिक के निर्माण के लिए उपयोग किया गया। 1983 में एक कंपनी ने ध्वस्त कर दिया पूरा ढांचा मुजेसर कोस मीनार पर एएसआई ने कहा कि 1983 में हरियाणा सरकार ने बहुराष्ट्रीय कंपनी को औद्योगिक इकाई स्थापित करने के लिए जमीन आवंटित कर दी। कंपनी ने पूरे ढांचे को ध्वस्त कर दिया था और जब एएसआई के संज्ञान में यह बात आई तो डेप्युटी कमिश्नर के साथ-साथ फरीदाबाद के तत्कालीन एसपी से इसकी शिकायत दर्ज कराई गई। संपर्क करने पर, पुरातत्व और संग्रहालय निदेशालय के अधिकारियों ने एएसआई और राज्य के बीच संचार की पुष्टि की, लेकिन कहा कि यह एएसआई और स्थानीय प्रशासन के बीच का मामला है। एएसआई के अधिकारियों ने दावा किया कि वे पहले ही इस बारे में सूचित कर चुके हैं।
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