नई दिल्ली/पटना: बिहार की एक पार्टी यूपी में चुनाव लड़ने जा रही है। नाम है- विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी)। इसकी सियासी अहमियत इसलिए है कि ...

नई दिल्ली/पटना:बिहार की एक पार्टी यूपी में चुनाव लड़ने जा रही है। नाम है- विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी)। इसकी सियासी अहमियत इसलिए है कि यह अति पिछड़ी जाति में आने वाले निषाद समाज की नुमाइंदगी करती है। बिहार में उसके चार विधायक हैं और पार्टी नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए सरकार का हिस्सा है। यूपी में भी निषाद समाज की तादाद अच्छी-खासी है। वहां पहले से स्थापित निषाद पार्टी से गठबंधन करने को बीजेपी और एसपी में होड़ दिखती रही है। वहां की चुनावी राजनीति में वीआईपी की एंट्री क्यों हो रही है, क्या सियासी समीकरण बन सकते हैं और बिहार में क्या कुछ चल रहा है, यह जानने के लिए वीआईपी के अध्यक्ष और बिहार सरकार के से बात की एनबीटी के नैशनल पॉलिटिकल एडिटर नदीम ने। प्रस्तुत हैं मुख्य अंश : सवाल- आपकी पार्टी ने यूपी में भी चुनाव लड़ने का फैसला किया है, कोई खास मकसद? मुकेश सहनी- राजनीति में बगैर मकसद कुछ भी नहीं होता। हमने पार्टी का गठन ही इसलिए किया है कि अभी तक सभी राजनीतिक दलों ने निषाद समाज का वोट लिया, लेकिन निषाद समाज कभी राजनीति में ताकत नहीं बन पाया। उसके मुद्दे अनछुए ही रहे। हमने निषाद समाज के लोगों को राजनीतिक रूप से ताकतवर बनाने के लिए ही अलग पार्टी बनाई है। हमारा लक्ष्य केंद्रीय राजनीति में निषाद समाज को ताकतवर भूमिका में लाना है। यह तभी मुमकिन होगा, जब हम राज्यों में मजबूत हों। बिहार में हमने अपनी ताकत दिखाई है। अब यूपी जा रहे हैं, दूसरे राज्य भी जाएंगे, हमारा लक्ष्य 2024 का लोकसभा चुनाव है। सवाल- लेकिन यूपी में पहले से ही ‘निषाद पार्टी’ मौजूद है, बीजेपी की सहयोगी के रूप में काम कर रही है, वहां जगह बनाना क्या आसान होगा? मुकेश सहनी-डॉक्टर साहब (निषाद पार्टी के अध्यक्ष डॉ. संजय निषाद) एक टिकट पर तो समझौता कर लेते हैं। सबने देखा कि 2018 के गोरखपुर उपचुनाव में अपने बेटे को टिकट दिलवाने के लिए वह समाजवादी पार्टी के साथ हो लिए। 2019 में भी केवल बेटे के टिकट पर उन्होंने बीजेपी को समर्थन दे दिया। हम ऐसा नहीं करने वाले। हम आबादी के अनुपात में अपनी भागीदारी चाहते हैं। बिहार में हम किसी के पिछलग्गू नहीं बने। हमने अपना शेयर मांगा टिकट में भी और सरकार में भी। बिहार में निषाद समाज के लोग गर्व करते हैं, वे सरकार में हैं। सवाल-यूपी में आपकी पार्टी किसके खिलाफ चुनाव लड़ेगी? मुकेश सहनी-हमारी पार्टी वहां किसी के खिलाफ चुनाव नहीं लड़ने जा रही है। हम अपने समाज के लोगों को जागृत करने जा रहे हैं कि अपनी पार्टी को जिताओ। 2020 में अगर बिहार में वीआईपी के विधायक जीते हैं तो यकीन मानिए 2024 में हम सांसद भी जिता कर दिखाएंगे। 2022 में अगर यूपी से वीआईपी के विधायक बने तो 2024 में सांसद भी बनेंगे। जितने ज्यादा सांसद जीतेंगे, उससे जो हमारी मुख्य लड़ाई है कि निषाद समाज के लोगों को अनुसूचित जाति की श्रेणी में शामिल कराने की, उसे ताकत मिलेगी। सवाल-बिहार में आप बीजेपी के साथ सरकार का हिस्सा हैं। यूपी में एसपी, बीएसपी, कांग्रेस भी अति पिछड़ा वर्ग की नुमाइंदगी करने वाली पार्टियों से गठबंधन की तलाश में हैं, किसके साथ रहना पसंद करेंगे? मुकेश सहनी-यूपी में तो हमारी अभी किसी के साथ गठबंधन करने की बात नहीं हुई है। हमने 160 सीटों की पहचान की है, जहां हमारे समाज की तादाद अच्छी-खासी है। हमने उन सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने के इरादे से काम भी शुरू किया है। अक्टूबर तक देखेंगे कि अगर समान विचारधारा वाली किसी पार्टी से कोई बात होती है और वह हमारी आबादी के अनुपात में हमें भागीदारी देने को तैयार होती है, तब अलायंस का सोचा जाएगा। सवाल-यूपी से हटकर बिहार पर आते हैं, वहां इस वक्त क्या चल रहा है? मुकेश सहनी-बिहार में सब बढ़िया चल रहा है। नीतीश कुमार जी के नेतृत्व में गठबंधन सरकार चल रही है, हम उम्मीद करते हैं कि पांच साल चलती रहेगी। सवाल-पिछले दिनों एलजेपी में टूट हुई, बिहार की पॉलिटिक्स पर इसका क्या असर पड़ेगा? मुकेश सहनी-अभी वहां कोई चुनाव नहीं होने वाला, इसलिए क्या असर पड़ता है, इसका कोई आकलन नहीं हो सकता। चुनाव जब होगा, तब देखने वाली बात होगी कि क्या समीकरण बनता है और उसका क्या असर पड़ता है। हमारा तो एलजेपी की टूट से कोई लेना-देना है नहीं। बस इतना कह सकता हूं कि चिराग पासवान जी को जो नुकसान होना था, वह हो गया। सवाल-एलजेपी की टूट के बाद बिहार में कई दूसरी छोटी पार्टियों के भी टूटने के आसार जताए जा रहे हैं, आपकी पार्टी कितनी सुरक्षित है? मुकेश सहनी-मुझे नहीं लगता है कि कोई मेरी पार्टी तोड़ेगा या मेरे लोग टूटेंगे। कुछ लोग तोड़ने पर यकीन रखते हैं और मैं जोड़ने पर यकीन रखता हूं। मुझे अपनी क्षमता पर पूरा भरोसा है। कोई अगर मेरे चार विधायक तोड़ेगा तो मैं उसके 40 विधायक तोड़ने की क्षमता रखता हूं। सवाल-बिहार से इस तरह की खबरें आती रहती हैं कि सरकार के घटक दलों में सब-कुछ ठीक नहीं है। तो क्या पांच साल नीतीश जी मुख्यमंत्री रह पाएंगे? मुकेश सहनी-वैसे तो राजनीति में कुछ कहा नहीं जा सकता कि कब क्या हो जाए, लेकिन अभी तो हमें ऐसा कुछ दिख नहीं रहा है जिसमें संकट जैसी कोई बात कही जाए। आराम से सरकार चल रही है। गठबंधन सरकार में घटक दलों के बीच कुछ कहासुनी तो चला ही करती है।
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