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तमिलनाडु के फादर स्टेन स्वामी कैसे पहुंचे झारखंड? आदिवासियों के मसीहा बनने से भीमा-कोरेगांव कांड तक

अमरेंद्र कुमार ज्ञानी, मुंबई/चाईबासा महाराष्ट्र के भीमा-कोरेगांव और झारखंड के खूंटी में पत्थलगढ़ी मामले में आरोपी का मुंबई में निधन हो गय...

अमरेंद्र कुमार ज्ञानी, मुंबई/चाईबासा महाराष्ट्र के भीमा-कोरेगांव और झारखंड के खूंटी में पत्थलगढ़ी मामले में आरोपी का मुंबई में निधन हो गया। मगर स्टेन स्वामी की पहचान इतनी भर नहीं थी। नब्बे के दशक में स्वामी ने आदिवासियों के बीच मानवाधिकार और जागरुकता के लिए काम किया था। जो तीन से ज्यादा दशकों तक जारी रहा। उनका सबसे अहम योगदान आदिवासी समाज को डायन-बिसाही अंधविश्वास से बचाने को लेकर रहा। डायन-बिसाही मामले में स्वामी का अहम योगदान स्टेनिस्लॉस लोर्दूस्वामी उर्फ फादर स्टेन स्वामी एक रोमन कैथोलिक पादरी थे, जिनका जीवन 1990 के दशक से ही झारखंड के आदिवासियों और वंचितों के अधिकारों के लिए काम करने के लिए समर्पित रहा। डायन-बिसाही के मामले में उन्होंने गांवों में जगारुकता फैलाने की कोशिश की। खासकर चाईबासा और उसके आसपास के जिलों में बेहतरीन काम हुए। झारखंड में आदिवासियों के लिए एक कार्यकर्ता के रूप में करीब 30 साल पहले उन्होंने काम करना शुरू किया था। हाशिए पर रहने वाले उन आदिवासियों के लिए भी काम किया, जिनकी जमीन का बांध, खदान और विकास के नाम पर बिना उनकी सहमति के अधिग्रहण कर लिया जाता था। कमाल का एलाइसिस करते थे स्टेन स्वामी सामाजिक विश्लेषण में उन्हें काफी दक्ष माना जाता था और आदिवासी मुद्दों पर वे काफी रिसर्च करते थे। ग्रामीणों को उनके लोकतांत्रिक हक के लिए वे कानून के दायरे में रहकर संघर्ष के लिए प्रेरित करते थे। सरकार की एक-एक योजनाओं की जानकारी वे आम जनता तक पहुंचाते थे। फादर स्टेन स्वामी शैक्षणिक रूप से पिछड़े जिलों में आदिवासियों को जागरुक करने के लिए पोस्टर, बैनर और दूसरी आसान चीजों का भी इस्तेमाल करते थे। स्थानीय भाषा में सचित्र बने पोस्टर-बैनर आदिवासियों को आकर्षित और जागरुक करने में अहम भूमिका निभाते थे। स्थानीय लोगों में नेतृत्व क्षमता बढ़ाने पर वे ज्यादा विश्वास करते थे। तमिलनाडु से झारखंड तक का सफर स्टेन स्वामी का जन्म 26 अप्रैल 1937 को तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में हुआ था। उनके जाननेवालों के अनुसार उन्होंने थियोलॉजी और मनीला विश्वविद्यालय से 1970 के दशक में समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर की पढ़ाई की। बाद में उन्होंने ब्रसेल्स में भी पढ़ाई की, जहां उनकी दोस्ती आर्चबिशप होल्डर कामरा से हुई, जिनके ब्राजील के गरीबों के लिए काम ने उन्हें काफी प्रभावित किया। बाद में उन्होंने 1975 से 1986 तक बेंगलुरू स्थित इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट के निदेशक के तौर पर काम किया। चाईबासा में रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता दामू वानरा ने बताया कि समाजशास्त्र से एमए करने के बाद कैथोलिक्स के चलाए जा रहे बेंगलुरू स्थित इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट में निदेशक के तौर पर काम करने के दौरान ही स्टेन स्वामी झारखंड के चाईबासा आने लगे। उन्होंने गरीबों और वंचितों के साथ रह कर उनके जीवन को नजदीक से देखने और समझने की कोशिश की। झारखंड आए तो चाईबासा का होकर रह गए इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट से 1986 में रिटायर होने के बाद स्टेन स्वामी चाईबासा में ही स्थाई तौर पर रहने लगे। 'बिरसा' नाम के एनजीओ के जरिए मुख्य रूप से मिशनरी के सामाजिक कार्य के लिए 'जोहार' नाम से एनजीओ की शुरुआत की। बाद में वो रांची के नामकुम में जाकर रहने लगे और चाईबासा में कभी-कभी जाते थे। फादर स्टेन स्वामी झारखंड आर्गेनाइजेशन अगेंस्ट यूरेनियम रेडियेशन से भी जुड़े रहे, जिसने 1996 में यूरेनियम कॉरपोरेशन के खिलाफ आंदोलन चलाया था, जिसके बाद चाईबासा में बांध बनाने का काम रोक दिया गया। वर्ष 2010 में फादर स्टेन स्वामी की 'जेल में बंद कैदियों का सच' नाम की किताब प्रकाशित हुई, जिसमें इस बात की चर्चा थी कि कैसे आदिवासी नौजवानों को नक्सली होने के झूठे आरोपों में जेल में डाला गया। गरीबों के लिए लड़नेवाले कानून भूल गए? दामू वानरा के मुताबिक 'स्वामी लगातार कहते थे कि गरीबों, आदिवासियों के अधिकारों के लिए लड़ो लेकिन कानून अपने हाथ में मत लो, लेकिन वह स्वयं पहले खूंटी के पत्थलगड़ी आंदोलन में कानून अपने हाथ में लेने और आदिवासियों को भड़काने के मामलों में पुलिस प्राथमिकी में आरोपी बनाए गए। फिर भीमा कोरेगांव के एल्गार परिषद वाले मामले में भी राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने आरोपी बनाकर गिरफ्तार किया।' स्टेन स्वामी पर पत्थलगढ़ी आंदोलन के मुद्दे पर तनाव भड़काने के लिए झारखंड सरकार के खिलाफ बयान जारी करने के आरोप थे। झारखंड की खूंटी पुलिस ने स्टेन स्वामी समेत 20 लोगों पर राजद्रोह का मामला भी दर्ज किया था। जमानत पर सुनवाई से पहले स्वामी की मौत एनआईए ने आरोप लगाया था कि स्टेन स्वामी प्रतिबंधित संगठन सीपीआई (माओवादी) के सदस्य हैं। वो इसके मुखौटा संगठनों के संयोजक हैं और सक्रिय रूप से इसकी गतिविधियों में शामिल रहते हैं। जांच एजेंसी ने उनपर संगठन का काम बढ़ाने के लिए एक सहयोगी के माध्यम से पैसे हासिल करने का आरोप लगाया था। 84 साल के स्टेन स्वामी की जमानत पर अदालत में सुनवाई होनी थी। मगर उससे पहले ही मुंबई में निधन हो गया। उन्हें भीमा-कोरेगांव मामले में कथित संलिप्तता को लेकर राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने गिरफ्तार किया था। इनपुट- PTI


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