हैदराबाद तेलंगाना के एक परिवार पर बीते दो साल कहर बनकर टूटे। महामारी के चलते लॉकडाउन ने नौकरी छीन ली और फिर एक दुर्घटना में उनके दोनों बै...

हैदराबाद तेलंगाना के एक परिवार पर बीते दो साल कहर बनकर टूटे। महामारी के चलते लॉकडाउन ने नौकरी छीन ली और फिर एक दुर्घटना में उनके दोनों बैल भी खत्म हो गए। परिवार के पास कमाई के साधन के रूप में उनका खेत ही है लेकिन नए बैल खरीदने के लिए परिवार के पास पैसे नहीं थे। तब जाकर ग्रैजुएट भाइयों ने खुद को ही बैलों की जगह लगाया और पिता के साथ मिलकर खेत की जुताई शुरू कर दी। पिता के साथ खेत में मेहनत करते इन भाइयों की तस्वीर बता रही है कि गरीबी ने इन्हें कितना मजबूर कर दिया है। कोरोना दौर में हालात इतने बिगड़ गए कि तेलंगाना के मुलुगू जिले के डोमेडा गांव के दो भाइयों ने खेत जोतने वाली मशीन की रस्सी अपने कंधे बांध ली है। बड़े भाई नरेंदर बाबू के पास बीएससी के साथ बीएड की डिग्री है और वह बतौर अध्यापक कुछ साल तक नौकरी भी करते रहे। उनके छोटे भाई श्रीनिवास के पास मास्टर्स इन सोशल वर्क की डिग्री है और वह लॉकडाउन से पहले हैदराबाद में एक कम्प्यूटर ऑपरेटर के रूप में काम कर रहे थे। परिवार चलाने के लिए कुली का काम भी किया नरेंदर बाबू ने बताया, 'लेकिन घर चलाने के लिए हमें बहुत मुश्किलें आ रही थीं। हमारी रोज की जरूरतें पूरी नहीं हो पा रही थीं।' नरेंदर ने चार साल पहले गणित के अध्यापक के रूप में नौकरी छोड़ दी थी और अपने गांव वापस आ गए थे। नौकरी में उनकी अच्छी कमाई नहीं थी। नरेंदर बताते हैं, 'कोविड की वजह से पिछले दो साल हमारे लिए बहुत मुश्किल भरे थे। मेरे भाई और मैंने कुली के रूप में काम किया।' परिवार को राशन कार्ड भी नहीं मिल सका है श्रीनिवास जिस इंस्टिट्यूट में कार्यरत थे वह लॉकडाउन के बाद बंद हो गया और नया काम नहीं मिल सका। इसके अलावा नया ट्रैक्टर खरीदने के लिए परिवार पर पैसे नहीं थे। इसी वक्त दोनों भाइयों ने तय किया कि अब बैलों की जगह वे खुद को लगाकर खेत की जुताई करेंगे। नरेंदर ने राशन कार्ड के लिए आवेदन किया है लेकिन उन्हें अभी तक मिल नहीं सका। नए बैल खरीदने के लिए नहीं बचे पैसे दोनों के पिता समैया ने बैलों का नया जोड़ा खरीदने के लिए काफी कोशिश की। उन्होंने किसी तरह 60,000 रुपये भी जमा किए लेकिन स्वस्थ और जवान बैलों के जोड़े की कीमत 75,000 रुपये होती है। समैया ने बताया, 'मैंने काफी मेहनत करके अपने बेटों को पढ़ाया था। मुझे उम्मीद थी कि उन्हें सरकारी नौकरी मिलेगी। मेरी सारी बचत अब खप चुकी है।'
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