पटना: आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद की वापसी ने एक बार फिर से बिहार से सियासी गलियारे का माहौल टाइट कर दिया है। लालू को देखते ही कुछ विपक्ष...

पटना: आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद की वापसी ने एक बार फिर से बिहार से सियासी गलियारे का माहौल टाइट कर दिया है। लालू को देखते ही कुछ विपक्षी दिग्गजों ने 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले 'एनडीए विरोधी, पीएम नरेंद्र मोदी विरोधी' ताकतों को एक साथ लाने की कोशिश शुरू कर दी है। 'लालू अभी भी लोकप्रिय'लालू अभी भी एक लोकप्रिय नेता हैं, यह तब स्पष्ट हो गया जब बीजेपी और जेडीयू दोनों ने सोमवार को आरजेडी के 25 वें स्थापना दिवस समारोह पर उनके भाषण को लेकर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। लालू अभी भी पारंपरिक विपक्षी खेमे के बीच अपनी बीजेपी (मोदी) विरोधी साख बरकरार रखते हैं। ये अलग बात है कि कई राज्यों में राजनीतिक समीकरण बदल गए हैं। RJD को लालू की गैरमौजूदगी का फायदा या नुकसान?बिहार में लालू के बेटे तेजस्वी प्रसाद यादव पार्टी की रीढ़ के रूप में काम करने वाले अपने पिता के जातिगत समीकरणों के साथ 'ए-टू-जेड' राजनीतिक संयोजन की कोशिश कर रहे हैं। ये 2020 के विधानसभा चुनावों में दिखा भी था। हालांकि, कई लोगों का मानना है कि अगर लालू पिछले साल जेल से बाहर होते तो परिणाम आरजेडी और उसके महागठबंधन के लिए अधिक बेहतर होते। लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जो कहते हैं कि उनकी अनुपस्थिति ने यहां तक कि आरजेडी के पोस्टरों से भी गायब रहने से, तेजस्वी और उनकी RJD को एक नई शुरुआत मिली। इसी का नतीजा था कि RJD इन चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। लोकप्रियता के बिहार में पैमाने पर देखें तो बिहार के दूरदराज के इलाकों में भी, सभी जातियों और वयस्क आयु वर्ग के लोग केवल दो नेताओं - लालू या फिर सीएम नीतीश कुमार को जानते हैं। लालू ने हाल ही में कहा- नेता कभी रिटायर नहीं होता आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव ने हाल ही में एक स्थानीय दैनिक को दिए एक साक्षात्कार में कहा था कि एक नेता कभी रिटायर नहीं होता है। वो गरीबों और दलितों के अधिकारों के लिए लड़ते रहेंगे। लेकिन दलितों को आवाज देने वाला व्यक्ति अब अपना वोट वापस झोली में नहीं ला सकता जैसा 1990 में था। क्योंकि पिछले 16 वर्षों में नीतीश सरकार ने सत्ता को सशक्त बनाया है। उन्हें आर्थिक रूप से, चाहे वह ऋण, पेंशन या फिर अन्य योजनाएं ही क्यों न हों। 'न लालू को न नीतीश को वोट'पूर्वी चंपारण जिले के चिरैया प्रखंड के मंगरौलिया के बढ़ई रमई कुमार शर्मा (55) कहते हैं कि 'सभी नेता झूठे हैं। उन्होंने गरीबों के लिए कुछ नहीं किया। बिहार को पिछड़ेपन की ओर धकेलने के अलावा लालू ने 15 साल में क्या किया? मेरे पास कोई पक्का घर नहीं है और नीतीश शासन में बिना रिश्वत दिए नहीं मिल सकता। मैं न तो नीतीश और न ही लालू को वोट दूंगा।' लालू खो चुके अपनी ऊर्जा- BJP पूर्व केंद्रीय मंत्री और अब बीजेपी एमएलसी संजय पासवान के मुताबिक 'मैंने आरजेडी के 25वें स्थापना दिवस पर उनका भाषण सुना। उन्होंने अपनी पुरानी ऊर्जा खो दी है। हालांकि लालूजी पिछले दरवाजे से राजनीति कर सकते हैं और विपक्षी ताकतों का समन्वय कर सकते हैं, लेकिन वो पीएम नरेंद्र मोदी को कोई चुनौती नहीं दे सकते।' RJD को करिश्मे की उम्मीद आरजेडी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने कहा कि लालू को सुनने के लिए लोगों का उत्साह साबित करता है कि वह अभी भी जनता के बीच बहुत लोकप्रिय हैं। उन्होंने कहा कि 'जहां तक राष्ट्रीय राजनीति में उनकी भूमिका का सवाल है, लालू मुद्दों को उठाकर और पार्टी के रुख को स्पष्ट करके इसमें शामिल हुए। यूपी विधानसभा चुनाव के बाद हर राजनीतिक दल अपना स्टैंड लेगा। इस स्तर पर कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी।' लालू की राजनीति बेटों के ईर्द गिर्द- JDUबीजेपी की सहयोगी जेडीयू का मानना है कि लालू की पूरी राजनीति उनके बेटों के इर्द-गिर्द घूमती है। पूर्व मंत्री और JDU प्रवक्ता नीरज कुमार के मुताबिक 'लालू अपने बेटे तेजस्वी को राजनीतिक रूप से स्थापित करने की कोशिश में व्यस्त हैं। पारिवारिक अंतर्विरोधों को प्रबंधित करने के अलावा उनकी कोई अन्य भूमिका नहीं है। इसलिए सोमवार को उन्होंने अपने दोनों बेटों और अपने बारे में बात की। वह कुछ सामाजिक समीकरणों के नेता हो सकते हैं, लेकिन लालू निश्चित रूप से अब लोकप्रिय नेता नहीं हैं।' 'आरजेडी बिहार की बड़ी पार्टी लेकिन देश की कांग्रेस'कदवा से कांग्रेस विधायक शकील अहमद खान एनडीए विरोधी दलों के समन्वय में लालू के लिए कोई भूमिका नहीं देखते हैं। उनके मुताबिक 'आरजेडी निश्चित रूप से बिहार में एक बड़ी पार्टी है, लेकिन केंद्र में केवल एक राष्ट्रीय पार्टी यानि कांग्रेस ही बीजेपी और एनडीए के खिलाफ समन्वय और रणनीति बना सकती है। हमारी नेता सोनिया गांधी पहले से ही अपने नेताओं के साथ वर्चुअल बैठकों के माध्यम से अन्य दलों के संपर्क में हैं।'
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