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लिंगायत: राजीव गांधी की वो ऐतिहासिक भूल...कर्नाटक में BSY पर BJP की अड़चन को समझिए

बेंगलुरु कर्नाटक में लिंगायत ऐसा मुद्दा है, जिस पर बीजेपी फूंक-फूंककर कदम बढ़ाती है। यही वजह है कि नेतृत्व परिवर्तन पर विचार कर रहे पार्ट...

बेंगलुरु कर्नाटक में लिंगायत ऐसा मुद्दा है, जिस पर बीजेपी फूंक-फूंककर कदम बढ़ाती है। यही वजह है कि नेतृत्व परिवर्तन पर विचार कर रहे पार्टी आलाकमान ने अभी सतर्क रुख अपनाया है। सूत्र बताते हैं कि पार्टी किसी भी तरह से लिंगायत वोट बेस को गलत संदेश नहीं देना चाहती है, जो पार्टी को राज्य की सत्ता में लेकर आया है। वर्तमान में मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा इस समुदाय के निर्विवाद नेता हैं। हालांकि, वह 78 साल के हैं, इसलिए पार्टी बदलाव चाहती है। 1969 से पहले तक ज्यादातर लिंगायत सीएम पार्टी के भीतर उनके विरोधियों का कहना है कि येदियुरप्पा आक्रामक हिंदुत्व का समर्थन नहीं नहीं करते हैं। कई अन्य बीजेपी नेताओं के विपरीत, येदियुरप्पा को अल्पसंख्यकों और अन्य समुदाय के नेताओं का समर्थन प्राप्त है और उन्हें परेशान करना आसान नहीं है। आजादी के पहले ही राज्य में लिंगायत शक्तिशाली रहे हैं। समुदाय को राज्य भर में फैले अपने धार्मिक ‘मठों’ और जातिगत रेखाओं को काटकर उनकी विशाल जनता से ताकत मिलती है। समुदाय आर्थिक रूप से मजबूत है और 1956 में राज्य के एकीकरण के बाद, 1969 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के समय कांग्रेस पार्टी का विभाजन होने तक, लिंगायत के मुख्यमंत्रियों ने एक के बाद एक राज्य पर शासन किया। येदियुरप्पा के नई पार्टी बनाने से 2013 में हारी थी बीजेपी वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक वाई एन गौदर कहते हैं, 'येदियुरप्पा को लिंगायत और पंचपीठ धार्मिक मठ का समर्थन प्राप्त है। एम.पी. रेणुकाचार्य, भाजपा विधायक ने कहा कि राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री रामकृष्ण हेगड़े के बाद, जिन्हें लिंगायतों का समर्थन प्राप्त था, येदियुरप्पा वही हैं।' पार्टी के नेताओं का कहना है कि वरिष्ठों की उनकी अवज्ञा एक चिंताजनक वजह रही है। येदियुरप्पा से एलके आडवाणी ने जब 2011 में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के लिए कहा तो उन्होंने पार्टी से नाता तोड़ लिया। 2012 में अपनी खुद की केजेपी पार्टी शुरू की। येदियुरप्पा ने 10 फीसदी वोट हासिल कर 2013 के आम चुनाव में बीजेपी की हार सुनिश्चित की थी। कर्नाटक की सियासत में लिंगायत का प्रभुत्व कोविड की पहली लहर के दौरान उन्होंने बयान दिया कि अल्पसंख्यक समुदायों को टारगेट करने वालों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की जाएगी। हिंदूवादी विचारधारा वाले एक धड़े ने इसकी आलोचना की। लिंगायत समुदाय राज्य की आबादी का 17 से 22 प्रतिशत हिस्सा है। चुनावों में यह प्रमुख भूमिका निभाता है। उत्तर कर्नाटक के 100 से अधिक विधानसभा क्षेत्रों में लिंगायत मतदाताओं का दबदबा है। तटीय क्षेत्र और कुछ जिलों को छोड़कर पूरे राज्य में लिंगायत मतदाताओं की उपस्थिति महसूस की जाती है। वर्तमान विधानसभा में इस समुदाय के 58 विधायक चुने गए हैं, जिनमें से 38 विधायक बीजेपी के हैं। राजीव गांधी की वो भूल और लिंगायत मुड़ गए राजनीतिक पंडितों का कहना है कि कांग्रेस पार्टी के नेता और तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 1990 में तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरेंद्र पाटिल को नई दिल्ली के लिए रवाना होने से पहले हवाई अड्डे से बाहर निकलने की घोषणा की थी। इसके बाद लिंगायत वोट बीजेपी की ओर मुड़ गया और राज्य में उसकी संभावनाओं को बल मिला। लिंगायत वीरेंद्र पाटिल ने एक साल पहले हुए चुनावों में 224 सीटों वाली कर्नाटक विधानसभा में 184 सीटें जीतकर कांग्रेस पार्टी को बड़ी जीत दिलाई थी। उनके बाहर निकलने के बाद भले ही कांग्रेस पार्टी दो बार सत्ता में आई, लेकिन लिंगायतों को वापस अपने पाले में लाने के उसके प्रयास विफल रहे। येदियुरप्पा को हटाकर गलती नहीं करना चाहती बीजेपी! सूत्रों ने कहा कि बीजेपी येदियुरप्पा को हटाकर वही गलती नहीं करना चाहती। बीजेपी विधायक बसवाना गौड़ा पाटिल यतनाल नेतृत्व में बदलाव की मांग में सबसे आगे थे। उन्होंने कहा कि येदियुरप्पा ने लिंगायत समुदाय की सवारी की थी। गौड़ा पाटिल ने कहा कि पंचमसाली उप संप्रदाय उनसे दूर हो गया है और उनका लिंगायत वोट आधार में एक बड़ा हिस्सा है। एक प्रभावशाली बुद्धिजीवी सीएस द्वारकानाथ बताते हैं कि स्वतंत्रता के बाद लिंगायत और वोक्कालिगा जैसी प्रमुख जातियों का राजनीतिक परिद्दश्य पर प्रभुत्व था। उसके बाद, 1972 और 1978 में देवराज उर्स के मुख्यमंत्री बनने पर पिछड़े वर्गों को प्रतिनिधित्व मिला। बाद में राज्य में ओबीसी-केंद्रित राजनीति देखी गई। अब फोकस ओबीसी से सबसे पिछड़ा वर्ग (एमबीसी) पर स्थानांतरित हो गया है। मुख्यधारा के राजनीतिक दलों द्वारा उनका आक्रामक रूप से पीछा किया जाता है। येदियुरप्पा की सम्मानजनक विदाई बीजेपी के लिए बड़ा सवाल द्वारकानाथ ने कहा कि जाति की राजनीति खत्म होने की उम्मीद है और अगली पीढ़ी के युवा जाति की बेड़ियों को तोड़ेंगे। कांग्रेस के पूर्व मंत्री प्रियांक खड़गे ने संकेत दिया कि नेतृत्व विवाद के बाद आने वाले दिनों में बीजेपी टूट जाएगी। बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने लक्ष्मण सावदी को उपमुख्यमंत्री बनाकर एक समानांतर नेता बनाने का प्रयास किया, हालांकि वे चुनाव हार गए और असफल रहे। यही हाल मुख्यमंत्री के कई अन्य विरोधियों का है जो चुनाव में पार्टी को जीत तक नहीं ले जा पा रहे हैं। कुल मिलाकर बीजेपी कर्नाटक में बदलाव चाहती है, लेकिन येदियुरप्पा के लिए सम्मानजनक विदाई सुनिश्चित करना चाहती है।


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