कोलकाता काबुल में कर्दन इंटरनैशनल स्कूल के टीचर स्कूल में कैद थे। तालिबान मिलिशिया ने स्कूल को चारों तरफ से घेर रखा था। उन्होंने टीचरों क...

कोलकाता काबुल में कर्दन इंटरनैशनल स्कूल के टीचर स्कूल में कैद थे। तालिबान मिलिशिया ने स्कूल को चारों तरफ से घेर रखा था। उन्होंने टीचरों को सुरक्षा के लिए बाहर न निकलने की चेतावनी दी। हालांकि तमल भट्टाचार्य समेत उनमें से कुछ टीचरों ने भारतीय वायु सेना की उड़ान से वापस आने के लिए हवाई अड्डे की यात्रा की तो उनमें से किसी ने उन लोगों को परेशान नहीं किया। 34 साल के तमाल ने कहा, 'तालिबान मिलिशिया के काबुल में घुसने के बाद मेरे माता-पिता चिंतित थे। मेरे बारे में सोचकर वे बीमार पड़ गए थे। मैं किसी भी तरह भारत आना चाहता था। मैंने स्कूल से बाहर निकलने का फैसला लिया।' तमाल ने कहा, भगवान का शुक्रगुजार तमाल ने कहा, 'मुझे बहुत अलग अनुभव हुआ। वे (तालिबान) भले ही कहीं और सख्त कार्रवाई कर रहे हों, लोगों के साथ बुरा बर्ताव कर रहे हों लेकिन हम बच गए। जहां हम लोग ठहरे थे, वे उस परिसर की रखवाली करते थे। हमारे साथ क्रिकेट खेलते थे और उस्ताद कहलाते थे। मैं उनके दयालु व्यवहार के लिए भगवान का शुक्रगुजार हूं।' 193 अन्य भारतीयों के साथ लाए गए तमाल भट्टाचार्य उन 194 भारतीयों में शामिल थे, जिन्हें रविवार को भारतीय वायु सेना की एक विशेष विमान में देश वापस लाया गया। मैकेनिकल इंजिनियर, तमाल ने पांच महीने पहले ही काबुल में दो विज्ञान विषयों को पढ़ाने के लिए स्कूल जॉइन किया था। 'किसी तरह पहुंचे एयरपोर्ट लेकिन...' तमाल के साथ चार अन्य लोग काबुल हवाईअड्डे के लिए निकले थे। उन्होंने बताया, 'कर्फ्यू जैसी स्थिति थी और सभी प्रतिष्ठान बंद थे। आखिरकार, हम उत्तरी द्वार पर पहुंच गए, लेकिन हवाई अड्डे में हम लोगों को एंट्री नहीं मिली। हम लोग भी वहां बने एक शादी के हॉल में गए जहां पर पहले से ही कई अन्य भारतीय प्रतीक्षा कर रहे थे।' तालिबानियों ने किया कैद टीचर ने बताया कि शुक्रवार की शाम हम एयरपोर्ट गए लेकिन अंदर नहीं जा सके। अगली सुबह तालिबान हमें एक निर्माण इकाई में ले गया जहां हमें कुछ समय के लिए रखा गया था। यह बहुत तनावपूर्ण समय था। हम तालीबानियों की गिरफ्त में थे, इसलिए डरे हुए थे।' फिर से वापस जाना चाहते हैं काबुल रिहा होने के बाद तमाल 150 लोगों के ग्रुप के साथ शनिवार शाम को हवाई अड्डे पहुंचे। यहां उसी रात भारतीय वायुसेना ने उन लोगों को भारत भेजा। भट्टाचार्य का कहना है कि स्थितियां सामान्य होने के बाद वह काबुल लौटना चाहते हैं, और चाहते हैं कि वहां जाकर फिर से बच्चों को पढ़ाने का काम शुरू करें।
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