जबलपुर वैक्सीन के लिए कुछ भी करेगा। एमपी के डिंडोरी जिले में शिक्षक खेत में धान की रोपनी () कर रहे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि खेत में काम कर ...

जबलपुर वैक्सीन के लिए कुछ भी करेगा। एमपी के डिंडोरी जिले में शिक्षक खेत में धान की रोपनी () कर रहे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि खेत में काम कर रहे मजदूर और किसान जाकर कोरोना का टीका लगवा सकें। किसान-मजदूरों ने पहले ही स्वास्थ्य विभाग को कह दिया था कि हम काम खत्म करने के बाद ही वैक्सीन के लिए जाएंगे। ऐसे में शिक्षक उन्हें वैक्सीन के लिए भेजकर उनका काम करने लगे। भोपाल से 380 किलोमीटर दूर शाहपुर से मानिकपुर गांव में शिक्षकों ने सात अगस्त को धान की रोपनी की है। हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए प्राइमरी टीचर जी आर झरिया ने बताया कि शिक्षक अपने सामान्य टीकाकरण के लिए चक्कर लगाते हुए गांव में बने बूछ पर पहुंचे, वहां पहुंचने पर देखा कि वैक्सीनेशन सेंटर खाली है। बूथ पर मौजूद स्वास्थ्यकर्मियों के रेकॉर्ड के अनुसार 33 लोगों को वैक्सीन की दूसरी डोज लगनी थी। साथ ही पहले शॉट के लिए भी लोगों को प्रेरित करनी थी। दोपहर एक बजे तक टीकाकरण केंद्र पर कोई टीका लगवाने नहीं आया था। हम चिंतित हो गए। हमने तब पाया कि सभी धान के खेतों में हैं। झरिया ने बताया कि इसके बाद हमलोगों ने अपना पैंट मोड़ा और किसानों से बात करने के लिए कीचड़ भरे खेतों में चले गए। उन्होंने कहा कि हमने उन्हें समझाने की कोशिश की कि टीका लगवाना चाहिए। किसान-मजदूरों ने कहा कि वे किसी और दिन टीका लगवा सकते हैं, लेकिन मौसम इंतजार नहीं करेगा। अभी मौसम धान की रोपनी के लिए अनुकूल है। अगर यह बदलता है, तो उनकी फसल बर्बाद हो जाएगी। शिक्षकों के सामने यह एक सम्मोहक तर्क था। वहीं, ज्यादातर शिक्षक गांव में ही पले-बढ़े थे और किसानों के इस दर्द को अच्छे से समझते थे। शिक्षक समझ गए थे कि गांव के किसान क्यों ऐसा कर रहे हैं। इसके बाद शिक्षकों ने आपसी चर्चा की। उसके बाद फैसला लिया कि हम, शिक्षक, खेतों में काम करेंगे और किसानों को वैक्सीनेशन के लिए भेज दिया। वहीं, शिक्षक खुद भी वहां टीका लगवाने के लिए ही पहुंचे थे। शिक्षकों के इस कार्य से गांव के सभी किसानों को दूसरी खुराक लग गई है। सीएमएचओ रमेश मरावी ने इसके लिए शिक्षकों की सराहना की है। उन्होंने कहा कि यह बुवाई का मौसम है, इसलिए हमारी टीमें लोगों को टीका लगवाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही हैं, जैसे लोगों के खेतों के लिए जाने से पहले गांवों में पहुंचना या उनके लौटने का इंतजार करना।
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