Page Nav

HIDE

Grid

GRID_STYLE

Classic Header

{fbt_classic_header}

Top Ad

Breaking News:

latest

CM गहलोत चले केजरीवाल की राह पर , राज्यपाल से टकराव से बचने के लिए निकाला ये फार्मूला, पढ़िये पूरी खबर

जयपुर अशोक गहलोत सरकार की ओर से राजस्थान में विधानसभा के बजट सत्र की कार्रवाई 19 मार्च को अनिश्चित काल के लिए स्थगित की गई। इसके बाद बिना...

जयपुर अशोक गहलोत सरकार की ओर से राजस्थान में विधानसभा के बजट सत्र की कार्रवाई 19 मार्च को अनिश्चित काल के लिए स्थगित की गई। इसके बाद बिना सत्रावसान के 9 सितंबर को विधानसभा की अगली बैठक बुला गहलोत ने भी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के नक्शे कदम पर चल राज्यपाल से टकराव से बचने का नया रास्ता ढूंढ लिया है। क्योंकि राजस्थान में भी दिल्ली की केजरीवाल सरकार की तरह पहली बार बजट सत्र की समाप्ति के बिना साढे 5 महीने बाद फिर से विधानसभा की कार्रवाई शुरू होगी । गहलोत सरकार ने विधानसभा के बजट सत्र का सत्रावसान करवाने के लिए राज्यपाल कलराज मिश्र के पास फाइल भेजी ही नहीं । राजस्थान विधानसभा के संसदीय इतिहास में यह पहली बार हो रहा है , जब विधानसभा के बजट सत्र के 5 महीने से भी ज्यादा समय बीत जाने पर भी सत्रवासन नहीं हुआ। इसलिए निकाली ये युक्ति! राजनीति के जानकारों का मानना है कि पिछली बार सचिन पायलट की बगावत के बाद सभा सत्र बुलाए जाने को लेकर राज्यपाल कलराज मिश्र और गहलोत सरकार में टकराव हुआ था। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को अपने पार्टी सहित समर्थित विधायकों की राजभवन में परेड तक करवानी पड़ी थी , जिससे सीएम गहलोत और राज्यपाल कलराज मिश्र के रिश्तो में खटास भी आ गई थी। लिहाजा इस बार गहलोत ने इस कहावत को चरितार्थ किया कि दूध का जला छाछ को भी फूंक फूंक कर पीता है। 6 महीने के भीतर एक बार विधानसभा की बैठक बुलाना अनिवार्य राजस्थान विधानसभा के बजट सत्र की कार्रवाई 19 मार्च को स्पीकर ने अनिश्चितकाल के लिए स्थगित की थी। 6 महीने के अंदर एक बार विधानसभा की बैठक बुलाना अनिवार्य होता है। इस गणित से 18 सितंबर तक विधानसभा की बुलाना आवश्यक था। इसी को मद्देनजर रखते हुए बिना सत्रावसान के विधानसभा की अगली बैठक 9 सितंबर को आहूत की गई है 2 महीनों के अंदर ही सत्रावसान राजस्थान विधानसभा के इतिहास पर नजर डालें, तो बजट सत्र सहित प्रत्येक सत्र की कार्यवाही समाप्त होने के 2 महीनों के अंदर ही सत्रावसान कर दिया जाता रहा है। इस बार 19 मार्च को बजट सत्र का काम पूरा हो गया था लेकिन यह परंपरा तोड़ कर सरकार ने सत्रावसान की फाइल राज्यपाल को भेजी ही नहीं, क्योंकि पायलट खेमे की बगावत के समय राज्यपाल कलराज मिश्र ने अचानक विधानसभा सत्र बुलाने की मंजूरी नहीं दी थी। बिना 21 दिन पहले के नोटिस के सत्र बुलाने को लेकर बढ़ी थी राज्यपाल- गहलोत में उलझनहम आपको बताते हैं कि सचिन पायलट खेमे की बगावत के समय विधानसभा सत्र बुलाने को लेकर सरकार और राज्यपाल के बीच किस प्रकार टकराव हुआ था। सरकार 31 जुलाई 2020 से पहले विधानसभा सत्र बुलाना चाहती थी। इसके लिए सीएम गहलोत ने कैबिनेट से प्रस्ताव पारित करवाकर फाइल राज्यपाल को भेजी थी मगर राज्यपाल ने 21 दिन पहले नोटिस नहीं दिए जाने को लेकर अचानक सत्र बुलाने का कारण पूछते हुए फाइल लौटा दी थी। इसके बाद सरकार और राज्यपाल के बीच यह फाइल तीन बार भेजी और लौटाई गई। फिर मुख्यमंत्री गहलोत को अपनी पार्टी और समर्थक विधायकों के साथ राजभवन में प्रदर्शन कर धरना देना पड़ा था । इसके बाद राज्यपाल ने 14 अगस्त 2020 को सत्र बुलाने की फाइल को मंजूर किया था दिल्ली के सीएम केजरीवाल ने भी राज्यपाल को नहीं भेजी थी सत्रावसान की फाइलइधर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पिछले साल दिल्ली में विधानसभा सत्र बुलाने के मामले में राज्यपाल से टकराव के बाद सत्रावसान के लिए राज्यपाल को फाइल नहीं भेज कर विधानसभा सत्र बुलाने का यह नया रास्ता खोज निकाला था। ऐसे में यही कहा जा रहा है कि राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत भी अब केजरीवाल के नक्शे कदम पर चल निकले हैं । बिना सत्रावसान के विधान सभा की बैठक बुलाने पर विधानसभा में उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र सिंह राठौड़ ने इसे राज्यपाल के अधिकारों पर अतिक्रमण बताया है। विपक्ष ने किया विरोधराठौड़ राठौड़ ने कहा कि सरकार ने सत्रावसान की फाइल राज्यपाल को नहीं भेज कर सरकार राज्यपाल के अधिकारों का अतिक्रमण कर रही है। अब तक नहीं हुआ है यह लोकतंत्र का अपमान है । इस संबंध में उप नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ ने विधानसभा सचिव को भी एक पत्र लिखकर संविधान के आर्टिकल के साथ अन्य कई सवाल खड़े किए हैं की विधानसभा का सत्रावसान के बिना सत्र आहूत करने से विधायक प्रश्न पूछने से वंचित रह जाएंगे । इसे राठौड़ ने विधायकों का विशेषाधिकार हनन का मामला भी बताया है। राठौड़ ने अपने पत्र में लिखा है कि विधानसभा का सत्रावसान कर राज्यपाल के माध्यम से विधानसभा आहूत करवाना चाहिए। संविधान के आर्टिकल 174 में राज्यपाल को दिए गए अधिकारों के प्रावधान इस तरह है 1 .राज्यपाल समय-समय पर राज्य के विधान मंडल के सदन या प्रत्येक सदन को ऐसे समय और स्थान पर जो वह ठीक समझे अधिवेशन के लिए आहूत करेगा किंतु उसके एक सत्र क़ी अंतिम बैठक और आगामी सत्र के प्रथम बैठक के लिए नियत तारीख के बीच 6 मार्च का अंतर नहीं होगा 2. राज्यपाल समय-समय पर (क) सदन का या किसी सदन का सत्रावसान कर सकेगा (ख) विधानसभा का विघटन कर सकेगा राजनीति के माहिर खिलाड़ी सीएम गहलोत ने बिना सत्रावसान के विधान सभा की बैठक बुलाकर एक बार फिर यह कहावत चरितार्थ की है कि तू डाल डाल तो मैं पात पाता । ( प्रमोद तिवारी की रिपोर्ट)


from Hindi Samachar: हिंदी समाचार, Samachar in Hindi, आज के ताजा हिंदी समाचार, Aaj Ki Taza Khabar, आज की ताजा खाबर, राज्य समाचार, शहर के समाचार - नवभारत टाइम्स https://ift.tt/3yZAi3Q
https://ift.tt/3jWYC08

No comments