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लेडी डॉक्टर के निधन के बाद तीन लोगों को नई जिंदगी, 200 KM का ग्रीन कॉरिडोर बनाकर इंदौर से भोपाल पहुंचाया गया लीवर

इंदौर/भोपाल एमपी में एक दंत रोग चिकित्सक की मौत के बाद तीन मरीजों को नई जिंदगी दी है। इसके लिए 200 किलोमीटर लंबा ग्रीन कॉरिडोर (200 KM Lo...

इंदौर/भोपाल एमपी में एक दंत रोग चिकित्सक की मौत के बाद तीन मरीजों को नई जिंदगी दी है। इसके लिए 200 किलोमीटर लंबा ग्रीन कॉरिडोर (200 KM Long Green Corridor) बना बना है। यह ग्रीन कॉरिडोर भोपाल से इंदौर तक बना था। ग्रीन कॉरिडोर के जरिए जरूरतमंद मरीजों तक अंग पहुंचाया गया है। इस दौरान भोपाल पुलिस की टीम ने शानदार काम किया है। दरअसल, इंदौर की 52 वर्षीय दंत रोग विशेषज्ञ के मरणोपरांत अंगदान से तीन जरूरतमंद मरीजों को नई जिंदगी मिलने की राह गुरुवार को आसान हो गई है। खास बात यह है कि प्रशासन ने इंदौर से भोपाल के बीच 200 किलोमीटर लंबा ग्रीन कॉरिडोर बनाया ताकि इस अंगदान से मिले लीवर को सूबे की राजधानी के एक अस्पताल में भर्ती जरूरतमंद मरीज में प्रतिरोपण के लिए जल्द से जल्द पहुंचाया जा सके। अधिकारियों ने बताया कि इंदौर में सड़क हादसे में 11 सितंबर की रात गंभीर रूप से घायल दंत रोग विशेषज्ञ संगीता पाटिल (52) को एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उन्होंने बताया कि इलाज के बावजूद पाटिल की सेहत बिगड़ती चली गई और डॉक्टरों ने गुरुवार को उन्हें दिमागी रूप से मृत (ब्रेन डेड) घोषित कर दिया। अधिकारियों ने बताया कि पाटिल का परिवार शोक में डूबा होने के बावजूद अपने दिवंगत परिजन के अंगदान के लिए राजी हो गए। इसके बाद सर्जनों ने दंत रोग विशेषज्ञ के मृत शरीर से उनका लीवर और दोनों किडनी निकाल लीं। इंदौर संभाग के आयुक्त पवन कुमार शर्मा ने बताया कि पाटिल की दोनों किडनी इंदौर शहर के ही दो जरूरतमंद मरीजों में प्रतिरोपित की गईं। शर्मा ने बताया कि पाटिल के लीवर को इंदौर से ग्रीन कॉरिडोर बनाकर एंबुलेंस के जरिए करीब 200 किलोमीटर दूर भोपाल के एक अस्पताल भेजा गया, जहां इस अंग को जरूरतमंद मरीज के शरीर में प्रतिरोपित किया जाएगा। क्यों बनता है ग्रीन कॉरिडोर दरअसल, ग्रीन कॉरिडोर बनाने का मतलब सड़क पर यातायात व्यवस्था को व्यस्थित करना होता है। इसके जरिए अंगदान में मिले अंगों को कम से कम समय में जरूरतमंद मरीज तक पहुंचाया जा सके। भोपाल में फंदा टोल नाका से बंसल अस्पताल तक 32 किमो का ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया था। एंबुलेंस ने 32 किमी की दूरी 28 मिनट में तय की। इस पूरी व्यवस्था को संभालने के लिए एक एएसपी, दो पुलिस उप अधीक्षक, दो निरीक्षक, चार सूबेदार, नौ उप निरीक्षक, 11 सहायक उप निरीक्षक, 22 हेड कॉन्स्टेबल, 38 कॉन्स्टेबल और 103 बल के साथ 7 मोबाइल को लगाया गया था। अधिकारियों ने बताया कि इंदौर में पिछले छह साल के दौरान दिमागी रूप से मृत 40 मरीजों का अंगदान हो चुका है। इससे मिले हृदय, लीवर, किडनी, आंखों और त्वचा के प्रतिरोपण से मध्यप्रदेश के साथ ही दिल्ली, हरियाणा और महाराष्ट्र में जरूरतमंद मरीजों को नए जीवन की अनमोल सौगात मिली है। दूसरे सूबों में हवाई मार्ग से अंग पहुंचाए गए हैं। उन्होंने बताया कि इंदौर में मरणोपरांत अंगदान का सिलसिला कोविड-19 के प्रकोप के चलते पिछले डेढ़ साल से थमा था जो दंत रोग विशेषज्ञ के अंगदान से बहाल हो गया है।


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