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'किसान आंदोलन का हश्र शाहीनबाग जैसा'...क्या वेस्ट यूपी में चुनौती को आंकने में भूल कर रही बीजेपी?

श्रेयांश त्रिपाठी, लखनऊ उत्तर प्रदेश में किसानों की महापंचायत ने एक बार फिर सरकार की खिलाफत की पुरजोर शुरुआत कर दी है। मुजफ्फरनगर के जीआई...

श्रेयांश त्रिपाठी, लखनऊ उत्तर प्रदेश में किसानों की महापंचायत ने एक बार फिर सरकार की खिलाफत की पुरजोर शुरुआत कर दी है। मुजफ्फरनगर के जीआईसी मैदान में किसानों ने मोर्चा खोलकर ये कह दिया है कि अगर सरकार उनकी बात नहीं मानती तो यूपी और उत्तराखंड में बीजेपी को सत्ता से बेदखल कर दिया जाएगा। एक ओर जहां किसानों ने बीजेपी की खिलाफत का अभियान छेड़ दिया है, वहीं सरकार के डेप्युटी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने कह दिया है कि किसान आंदोलन का हश्र भी शाहीनबाग के आंदोलन सा होगा। हालांकि राजनीति के जानकार इस बात पर हैरानी जताते हुए ये कह रहे हैं कि बीजेपी किसानों के आंदोलन को अंडर एस्टीमेट कर रही है और इसका असर 2022 चुनाव पर हो सकता है। केशव प्रसाद मौर्य ने रविवार को कानपुर में अपने एक कार्यक्रम के बाद मीडिया से बात करते हुए कहा, 'किसान आंदोलन में एसपी, बीएसपी और कांग्रेस के लोग हैं। जैसे शाहीनबाग टांय-टांय फिस्स हुआ, वैसा ही किसान आंदोलन का भी होगा। आगे चुनाव होने को हैं, साफ हो जाएगा कि जनता किसके साथ खड़ी है। हमनें इन्हें 2019 में भी पराजित किया है और इस बार भी यही होगा।' केशव प्रसाद मौर्य के इस बयान को राजनीति के जानकार अतिआत्मविश्वास मान रहे हैं। पश्चिम यूपी में लंबे समय तक अखबारों के संपादक रह चुके वरिष्ठ पत्रकार रवींद्र श्रीवास्तव कहते हैं कि शाहीनबाग और किसान आंदोलन के बीच एक बड़ा अंतर है जो बीजेपी के लोग नहीं समझ पा रहे हैं। महेंद्र टिकैत के वक्त से ही प्रदर्शनों का प्रभाव रवींद्र श्रीवास्तव किसान आंदोलन के बारे में बताते हुए कहते हैं, 'मैं एक लंबे वक्त तक महेंद्र सिंह टिकैत और उनके संगठन की गतिविधियों का साक्षी रहा हूं। पश्चिम यूपी में बाबा टिकैत का ही प्रभाव है, जिसकी पृष्ठभूमि पर राकेश टिकैत और नरेश टिकैत संयुक्त किसान मोर्चा का आंदोलन चला रहे है। ये पश्चिम उत्तर प्रदेश के ऐसे किसानों का संगठन है, जिनका खेतिहरों पर भी प्रभाव है और जातियों पर भी। शाहीनबाग के लोगों को पहले कोई नहीं जानता था, लेकिन पश्चिम यूपी के किसानों ने टिकैत परिवार के नेतृत्व में दशकों से प्रदर्शन और आंदोलन होते देखे हैं। ऐसे में यह कहना गलत होगा कि शाहीनबाग और किसान आंदोलन दोनों के प्रदर्शनकारी एक से ही है।' चौधरी चरण सिंह और महेंद्र टिकैत जैसे नेताओं की पृष्ठभूमि मुजफ्फरनगर में किसानों की पंचायत के बारे में बताते हुए रवींद्र श्रीवास्तव कहते हैं कि राकेश टिकैत ने जान-बूझकर वो इलाका चुना है, जहां किसान यूनियन का सबसे अधिक प्रभाव है। पश्चिम यूपी की धरती का किसान सत्ता विरोधी रवैये के लिए मशहूर रहा है। चौधरी चरण सिंह जैसे जमीनी नेताओं की पृष्ठभूमि का ये इलाका सत्ता विरोध की धरती रहा है। इंदिरा गांधी के उत्कर्ष काल में भी ये धरती बगावत के रवैये के लिए जानी जाती थी, जिसमें टिकैत परिवार के लोग भी शामिल होते थे। 'जरा सी चूक से हो सकता है नुकसान' शाहीनबाग का आंदोलन कुछ हफ्तों में खड़ा हुआ और बाद में उसके कई लोग बीजेपी में ही शामिल हो गए। किसानों को अंडरएस्टीमेट करना गलत होगा। बंगाल में ममता बनर्जी 1700 वोट से अपने आंदोलन की धरती पर चुनाव हार सकती हैं, तो बीजेपी के गढ़ भी तो ऐसे ही हैं। विधानसभा चुनाव में जरा सा भी वोट शिफ्ट नुकसान कर सकता है, बंगाल में टीएमसी के वोटरों में थोड़ी सी टूट बीजेपी को कहां पहुंचा सकी उदाहरण देख लीजिए। 2019 में जिन 9 पर हारे, उसमें 6 वेस्ट यूपी की सीट केशव प्रसाद मौर्य ने अपने बयान में यह कहा है कि उन्होंने 2019 के चुनाव में विपक्ष को पराजित किया है। ये बात सही हो सकती है, लेकिन केशव प्रसाद मौर्य एक ऐसी राजनीतिक तस्वीर को भूल रहे हैं, जिसमें उन्हें 9 लोकसभा सीट गंवानी भी पड़ी है। बड़ी बात ये कि जिन 2014 की अपेक्षा 2019 में बीजेपी की जो 9 सीट कम हुई है, उसमें से 6 सीटें पश्चिम यूपी की हैं। इनमें बिजनौर, नगीना, मुरादाबाद, रामपुर, संभल, अमरोहा की सीटें शामिल हैं। वहीं मुजफ्फरनगर जैसे इलाके में जहां केंद्रीय मंत्री संजीव बलियान खुद खाप पंचायत के सदस्य हैं, वहां बीजेपी सिर्फ 6526 वोट के अंतर से जीत सकी थी। कल्याण और हुकुम सिंह वाला वक्त अब नहीं रवींद्र श्रीवास्तव कहते हैं कि बीजेपी किसानों के प्रभाव को अंडर एस्टीमेट कर रही है। ये समझना होगा कि विधानसभा में एक स्थानीय विरोध भी जीत हार के समीकरण बदल देता है। अतीत की पृष्ठभूमि में पश्चिम यूपी में बीजेपी विपक्षी पार्टी की तरह 20-25 सीटों पर जीतती रही है, वो भी ऐसे वक्त में जब उसके पास यहां कल्याण सिंह और हुकुम सिंह जैसे नेता हुआ करते थे। अब स्थितियां अलग हैं, ऐसे में किसान 2022 में बीजेपी की जीत पर प्रतिकूल असर डाल दें ये कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी। किसान आंदोलन, टिकैत के आंसू और बीजेपी का अति आत्मविश्वास पार्टी का नुकसान कर सकते हैं।


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