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बिहार के किस नेता ने कराई कन्हैया कुमार की कांग्रेस में एंट्री, भाकपा में कौन रहे युवा नेता के 'गॉड फादर'?

पटना कांग्रेस जेएनयूएसयू के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार और गुजरात विधायक जिग्नेश मेवाणी का स्वागत करने के लिए तैयार है। दोनों युवा नेता म...

पटना कांग्रेस जेएनयूएसयू के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार और गुजरात विधायक जिग्नेश मेवाणी का स्वागत करने के लिए तैयार है। दोनों युवा नेता मंगलवार दोपहर करीब तीन बजे कांग्रेस में शामिल होने के लिए तैयार हैं। दोनों नेताओं ने हाल ही में राहुल गांधी से मुलाकात की थी और सूत्रों का कहना है कि इन नेताओं और कांग्रेस पार्टी के बीच बातचीत को अंतिम रूप दे दिया गया है। कांग्रेस इन दोनों नेताओं को विधानसभा चुनाव से पहले और खासकर मेवाणी को गुजरात चुनाव से पहले उनकी वक्तृत्व और भीड़ खींचने की क्षमता के लिए साथ लाना चाहती है। उत्तर भारत के लिहाज से कन्हैया कुमार के कांग्रेस में आने की खबर मीडिया की सुर्खियां बन रही है। बचपन से वाम विचारधार के बीच पले-बढ़े कन्हैया कुमार के भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) से अलग होना लोगों के मन में कई तरह के सवाल खड़े कर रहे हैं। राजनीतिक गलियारे में चर्चाएं हो रही हैं कि आखिर कन्हैया कुमार ने वाम दल को छोड़ने का फैसला क्यों किया है। इसके अलावा ये भी सवाल उठ रहे हैं कि कन्हैया कुमार को इतनी कम उम्र में भाकपा ने इतनी ज्यादा अहमियत दी इसके बाद भी वह क्यों वहां से अलग हो रहे हैं। आइए इन तमाम सवालों का जवाब जानने की कोशिश करते हैं। इस वजह से कन्हैया कुमार का भाकपा से मन हुआ खट्टा! कन्हैया कुमार जेएनयू में तथाकथित राष्ट्रविरोधी नारेबाजी के चलते सुर्खियों में आए थे। नारेबाजी का मुद्दा गरम होने पर कन्हैया की जिंदगी के कई पहलू मीडिया के सामने आए थे, जिसमें उनकी एक तस्वीर दिखी थी। कन्हैया कुमार के स्कूल टाइम की इस तस्वीर में वह वामदल के कद्दावर नेता एबी वर्धन उन्हें सम्मानित करते हुए दिख रहे हैं। युवा नेता के पारिवारिक बैकग्राउंड की हुई पड़ताल में पता चला कि उनके मां-पिता भी वाम विचारधारा से प्रेरित रहे हैं। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही उठता है कि बचपन से वाम विचारधारा के बीच बढ़ा नेता अचानक से कांग्रेस में शामिल होने का फैसला कैसे कर सकता है। यूं तो किसी एक विचारधारा को त्यागकर दूसरे विचारधारा का झंडा थामने की पीछे कई वजह होती है, लेकिन कन्हैया कुमार के मामले की पड़ताल करने पर एक मात्र तात्कालिक कारण दिख रहे हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान कई ऐसे मामले सामने आऐ थे जिसके आधार पर कहा जा सकता है कि भाकपा का बिहार राज्य नेतृत्व कन्हैया कुमार को अपने बीच पचा नहीं पा रहा था। बिहार भाकपा के कई नेता आरोप लगा रहे थे कि युवा नेता पर जरूरत से ज्यादा भरोसा जताया जा रहा है। कन्हैया कुमार चाह कर भी बिहार के वाम नेताओं का फुल सपोर्ट हासिल नहीं कर पा रहे थे। बताया जा रहा है कि दो हफ्ते पहले बेगूसराय संसदीय क्षेत्र में भाकपा के एक कार्यक्रम में शिरकत करने के लिए कन्हैया कुमार को आमंत्रित किया गया था। कहा जा रहा है कि पार्टी के स्थानीय नेताओं के विरोध के चलते कन्हैया कुमार को बिना सूचित किए कार्यक्रम रद्द कर दिया गया। वहीं कन्हैया कुमार इस कार्यक्रम कें शिरकत करने के लिए दिल्ली से बेगूसराय पहुंच चुके थे। सूत्र बताते हैं कि बिना सूचना कार्यक्रम रद्द होने की बात पता चलने पर कन्हैया कुमार बेहद नाराज हो गए और उसी वक्त अपने समर्थकों से कहा कि इस पार्टी में उनका मन खट्टा हो चुका है। इस घटना को कन्हैया कुमार के भाकपा से अलग होने का तात्कालिक कारण माना जा रहा है। इससे पहले कन्हैया कुमार पर उनके व्यवहार के चलते हैदराबाद में डी राजा की उपस्थिति में भाकपा की राष्ट्रीय कमेटी ने उनके खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित किया था। भाकपा में इसे बड़ी सजा मानी जाती है। इस बात से युवा नेता पहले ही नाराज चल रहे थे। बिहार भाकपा नेताओं के व्यवहार से उनका पार्टी के प्रति लगाव उखड़ गया। वाम दल में कन्हैया कुमार के गॉड फादर कौन? वामदलों के फंक्शन के सिस्टम में किसी भी नेता के लिए संगठन में अहम ओहदा पाना बेहद कठिन होता है। इसके लिए बेहद जटिल नियम कायदे हैं। पार्टी के नियम-कायदे को नजरअंदाज कर कन्हैया कुमार को भाकपा ने काफी बढ़ावा दिया। यहां तक कि कन्हैया कुमार को 2019 के लोकसभा चुनाव में बेहार के लेनिनग्राद कहे जाने वाले बेगूसराय सीट से प्रत्याशी भी बनाया गया। हालांकि कन्हैया बीजेपी के कद्दावर नेता गिरिराज सिंह के सामने चारो खाने चित हो गए। वाम दलों के नेताओं से बात करने पर पता चलता है कि कन्हैया कुमार को भाकपा में इतनी अहमियत दिलाने में सत्यनारायण सिंह ने अहम रोल निभाया। बयोवृद्ध नेता और बिहार भाकपा के तत्कालीन सचिव सत्यनारायण सिंह को भरोसा था कि अगर पार्टी को दोबारा से मजबूत करना है तो किसी युवा चेहरे को आगे करना होगा। माना जाता है कि सत्यनारायण सिंह ने पार्टी के नेताओं को कन्हैया के चेहरे पर दांव लगाने के लिए राजी किया था। 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद सत्यनारायण सिंह की मौत के बाद से पार्टी की बिहार ईकाई ने कन्हैया कुमार को हासिए पर ढकेलना शुरू कर दिया। भाकपा में अपने गॉड फादर की डेथ के बाद से कन्हैया कुमार अपने लिए दूसरे दलों में विकल्प की तलाश में जुट गए थे। इसी बीच प्रशांत किशोर की सलाह पर राहुल गांधी ने कन्हैया कुमार को पार्टी में लाने की हामी भर दी है। माना जात है कि इससे पहले कन्हैया कुमार बिहार में आरजेडी और जेडीयू में भी अपने लिए विकल्प तलाशने की कोशिश की थी, लेकिन वहां बात नहीं बन पाई। सूत्र बताते हैं कि कांग्रेस विधायक शकील अहमद खान की वजह से कन्हैया कुमार का इंट्रेस्ट कांग्रेस में जगा और राहुल गांधी से मुलाकात हो पाई।


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