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बेहमई कांड: 40 साल से इंसाफ की थी आस, मुख्य गवाह जंटर सिंह की थमी सांस

कानपुर कानपुर देहात जिले के बेहमई गांव में फरवरी-1981 में हुए नरसंहार के प्रत्यक्षदर्शी और केस के अहम गवाह और गोलियों से घायल हुए जंटर सि...

कानपुर कानपुर देहात जिले के बेहमई गांव में फरवरी-1981 में हुए नरसंहार के प्रत्यक्षदर्शी और केस के अहम गवाह और गोलियों से घायल हुए जंटर सिंह की गुरुवार को मौत हो गई। परिवार के लोगों ने बेहमई में यमुना तट पर उनका अंतिम संस्कार कर दिया। सरकारी वकील राजू पोरवाल ने बताया कि जंटर की गवाही हो चुकी है। ऐसे में केस पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। कुछ महीनों पहले केस के मुख्य वादी राजाराम सिंह की भी मौत हो गई थी। केस में मुख्य आरोपित दस्यु सुंदरी फूलन देवी की दो दशक पहले दिल्ली में हत्या कर दी गई थी। बेहमई कांड क्या हैआरोप है कि अपने अपने साथ हुए गैंगरेप का बदला लेने के लिए 14 फरवरी, 1981 को फूलन देवी और उसके गैंग के कई अन्य डकैतों ने कानपुर देहात में यमुना के बीहड़ में बसे बेहमई गांव में 20 लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी थी। इनमें 17 लोग ठाकुर बिरादरी से ताल्लुक रखते थे। वारदात के दो साल बाद तक पुलिस फूलन को गिरफ्तार नहीं कर सकी थी। आरोप है कि फूलन देवी और उसके गैंग के लोगों ने 14 फरवरी 1981 को बेहमई गांव में 20 लोगों की हत्या कर दी थी। एक दशक पहले केस का ट्रायल शुरू हुआ था। दिसंबर-2019 से केस लगातार अदालती फेर में उलझा रहा। इस केस पर आज तक फैसला नहीं आ सका है। 1983 में सरेंडर, बनीं सांसद, फिर हत्या 1983 में फूलन ने कई शर्तों के साथ मध्य प्रदेश में आत्मसमर्पण किया था। 1993 में फूलन जेल से बाहर आईं। वह समाजवादी पार्टी के टिकट पर मिर्जापुर लोकसभा सीट से दो बार सांसद भी बनीं। 2001 में ने फूलन देवी की दिल्ली में उनके घर के पास हत्या कर दी थी। 2011 में स्पेशल जज (डकैत प्रभावित क्षेत्र) में राम सिंह, भीखा, पोसा, विश्वनाथ उर्फ पुतानी और श्यामबाबू के खिलाफ आरोप तय होने के बाद ट्रायल शुरू हुआ। राम सिंह की जेल में मौत हो गई। फिलहाल पोसा ही जेल में है। पीड़ित पक्ष की महज 8 विधवाएं ही जिंदा इस हत्‍याकांड में मारे गए लोगों की विधवाएं न्‍याय की बाट जोहती रहीं। इनमें से आज महज 8 ही जीवित रह गई हैं। ये भी किसी तरह जानवरों को पालकर अपना जीवन-यापन कर रही हैं। उनसे विधवा पेंशन का वादा किया गया था लेकिन वह वादा ही रहा। गांव में बिजली कुछ समय ही आती है, रात में गांव अंधेरे में डूब जाता है। नजदीकी बस स्‍टैंड यहां से 14 किलोमीटर दूर है। प्राथमिक स्‍वास्‍थ्‍य केंद्र तक जाने में करीब दो घंटे लग‍ते हैं। 300 घरों के इस गांव में रह रही इन विधवाओं के पास गरीबी में जीने के अलावा कोई और रास्‍ता नहीं बचा।अब तक फैसला नहीं आ सका है। डकैतों की गोलियों से घायल जंटर सिंह पूरी वारदात का प्रत्यक्षदर्शी थे। वह केस का मुख्य गवाह भी थे। वारदात के बाद जंटर को राजपुर तहसील में ही नौकरी मिल गई थी।


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