भोपाल हाल ही में एसआरएस की तरफ से जारी आंकड़ों से यह पता चलता है कि भारत में शिशु मृत्यु दर गिरकर 30 हो गई है, लेकिन पिछले पांच सालों में...

भोपाल हाल ही में एसआरएस की तरफ से जारी आंकड़ों से यह पता चलता है कि भारत में शिशु मृत्यु दर गिरकर 30 हो गई है, लेकिन पिछले पांच सालों में अधिकांश राज्यों में गिरावट धीमी हो गई है। इसके साथ ही यह उन राज्यों के बीच भारी अंतर को भी प्रकट करता है। केरल का आईएमआर अमेरिका के बराबर है और एमपी () की स्थिति यमन या सूडान से भी बदतर है। चिंता की बात यह है कि यह सबसे खराब स्थिति वाला राज्य है, यहां सुधार की रफ्तार भी धीमी है। हाल ही में जारी आंकड़े के अनुसार भारत में 2009-2019 तक शिशु मृत्यु दर एक हजार में 50 था। हालांकि यह बांगलादेश और नेपाल से खराब है। वहां, शिशु मृत्यु दर 26 है। पाकिस्तान में शिशु मृत्यु दर 56 है। वहीं, अगर भारत की बात करें तो 2009 से 2014 के बीच में जबरदस्त सुधार हुआ था। एमपी में 2009 में शिशु मृत्यु दर 67 था। 2014 में यह घटकर 52 पर पहुंच गया था। 2019 के आंकड़े के अनुसार एमपी में शिशु मृत्यु दर 46 है। यानी 2014 से 2019 के बीच में बहुत ज्यादा सुधार नहीं हुआ है। एमपी की स्थिति सूडान से भी खराब है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या एमपी में खराब स्वास्थ्य व्यवस्था की वजह से ये हालात है या फिर पोषण की मार है। हाल में आए कुछ रिपोर्ट्स को देखें तो दोनों वजह है। अभी एमपी में वायरल फीवर है। ग्वालियर और इंदौर जैसे बड़े शहरों के अस्पताल में बच्चों के इलाज के लिए समुचित बेड नहीं है। एक बेड पर कई-कई बच्चों का इलाज चल रहा है। वहीं, अगर पोषण की बात करें तो ग्रामीणों इलाकों में इसकी ज्यादा मार है। आदिवासी बाहुल्य इलाकों से ऐसी खबरें ज्यादा आती हैं। मगर सरकार वाहवाही लुटने में लगी है। आंगनबाड़ी केंद्रों के जरिए बच्चों को पोषक आहार देने की कोशिश तो की जा रही है। मगर धरातल पर सच्चाई इससे अलग है।
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