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आधी रात को सीएम की शपथ, पटवारी बने डेप्युटी कलेक्टर, साल भर तक स्टेशन पर फाइलें... एमपी के स्थापना दिवस पर अनसुने किस्से

भोपाल आजादी के बाद एक नवंबर 1956 को कई राज्यों को जोड़कर मध्य प्रदेश का गठन किया गया था। अपने गठन के बाद एमपी देश के सबसे बड़े राज्यों मे...

भोपाल आजादी के बाद एक नवंबर 1956 को कई राज्यों को जोड़कर मध्य प्रदेश का गठन किया गया था। अपने गठन के बाद एमपी देश के सबसे बड़े राज्यों में शुमार था। छत्तीसगढ़ के अलग होने के बाद भी एमपी देश का दूसरा सबसे बड़ा राज्य है। एमपी में आज अपना 66वां स्थापना दिवस मना रहा है। इसे लेकर प्रदेश के लोगों को पीएम, सीएम और देश के अन्य नेताओं ने बधाई दी है। एमपी राज्य के गठन को लेकर कई दिलचस्प किस्से हैं। राज्य गठन के बाद रविशंकर शुक्ल ने पहले मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी। उन्हें राज्यपाल डॉ भोगराजू पट्टाभि सीतारमैया ने शपथ दिलाई थी। शपथ के दौरान उन्हें किसी ने याद दिलाया था कि आज तो आमवस्या की रात है। इस रविशंकर शुक्ल ने असहज होते हुए कहा था कि इस अंधेरे को मिटाने के लिए प्रदेश में आज लाखों दिए जल रहे हैं। उन्होंने शपथ ली थी। मगर दुर्भाग्य पूर्ण यह रहा कि 31 दिसंबर 1956 को उनका निधन हो गया। चार राज्यों को मिलाकर हुआ एमपी का गठन मध्य प्रदेश का पुर्नगठन भाषीय आधार पर किया गया था। इसके घटक राज्य मध्य प्रदेश, मध्य भारत, विंध्य प्रदेश और भोपाल थे। सभी राज्यों की अपनी विधानसभाएं थी। मध्य प्रदेश का निर्माण तत्कालीन सीपी एंड बरार, मध्य भारत, विंध्यप्रदेश और भोपाल राज्य को मिलाकर हुआ है। इसे पहले मध्य भारत के नाम से ही जाना जाता था। राजधानी को लेकर विवाद राज्य गठन के बाद सबसे ज्यादा विवाद राजधानी को लेकर था। मध्य भारत में ग्वालियर और इंदौर बड़े शहर थे। इसके साथ ही सीएम के कारण रायपुर भी महत्वपूर्ण था। मगर राज्य-पुनर्गठन आयोग ने जबलपुर के नाम को राजधानी के लिए प्रस्तावित किया था। सभी की अपनी-अपनी महत्वकांक्षा की वजह से भोपाल के नाम पर अंतिम मुहर लगी क्योंकि दूसरे शहरों की तुलना में भोपाल में भवन ज्यादा था। यह सरकारी कामकाज के लिए काफी उपयुक्त थे। साथ ही भोपाल के नवाब का दूसरी तरफ झुकाव भी थी। इसे रोकने के लिए भोपाल को राजधानी बनाने का निर्णय लिया गया था। जबलपुर के लोगों ने नहीं मनाई दिवाली राजधानी चुने जाने तक भोपाल जिला भी नहीं था। 1972 में इसे जिला बनाया गया है। वहीं, जब राजधानी के रूप में भोपाल के नाम पर मुहर लगी तो जबलपुर के लोग सबसे ज्यादा आहत हुए। बताया जाता है कि वहां के लोगों ने उस दिन दिवाली नहीं मनाई थी। कुछ घरों को छोड़ दें तो ज्यादातर घरों में उस दिन दीप नहीं जले थे। इसके बाद जबलपुर के लोगों का प्रतिनिधिमंडल दिल्ली भी गया था, जिसका कोई असर नहीं हुआ। पटवारी बना दिए गए डेप्युटी कलेक्टर मध्यप्रदेश के गठन कई राज्यों को मिलाकर हुआ था। इसलिए शुरुआती पांच साल बड़े चुनौतीपूर्ण रहे हैं। सभी राज्यों के लोगों की अलग कार्यशैली थी। सबसे बड़ी चुनौती नए राज्यों से आए अधिकारियों और कर्मचारियों को समाहित करना था। ऐसे में रजवाड़ों को पटवारी और तहसीलदार नए राज्य में डेप्युटी कलेक्टर का दर्जा पा गए। वहीं, पुराने मध्य प्रदेश के आईसीएस अधिकारियों को ज्यादा फायदा नहीं हुआ। स्टेशन पर पड़ी रहीं फाइलें बताया जाता है कि राजधानी बनने के बाद दूसरे राज्यों की पूर्व राजधानी नागपुर, रीवा, इंदौर और ग्वालियर से सरकारी रेकॉर्डों को भोपाल लाया जा रहा था। ट्रेन के वेगनों से पुरानी फाइलों को लाया जा रहा था। एक पुरानी किताब में एक वाक्या का जिक्र है, जिसमें यह बताया गया है कि मध्य भारत के एक पत्थर खदान के मालिक ने लीज का नवीनीकरण मांगा तो उनसे यह कह दिया गया कि उससे संबंधित फाइलें पुरानी नस्ती रेलवे पर पड़े तीन वेगनों में है, उसे ढूंढकर लाएं। क्योंकि भोपाल में इसे रखने के लिए जगह नहीं थी।


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