खरगोन एमपी () के खरगोन जिले में आयोजित एक मेले में देग लूटने की अनोखी परंपरा है। इस मेले में हिंदू और मुस्लिम धर्म के लोग आते हैं। मेले म...

खरगोन एमपी () के खरगोन जिले में आयोजित एक मेले में देग लूटने की अनोखी परंपरा है। इस मेले में हिंदू और मुस्लिम धर्म के लोग आते हैं। मेले में देग लूटने की यह अनोखी परंपरा वर्षों से चली आ रही है। पिरानपीर बाबा और शीतला माता के मेले में हजारों लोगों ने देग लूटी है। उबलते पानी में चावल लूटने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु उमड़े हैं। देश में अजमेर शरीफ के बाद केवल सनावद में देग लुटाई होती है। इसका खर्च एक परिवार वहन करता है। देग के साथ 80 चांदी के सिक्के भी होते हैं। सनावद में पिरानपीर बाबा और शीतला माता का मेला लगता है। इस मेले में 1996 से करीब 113 साल से देग लूटने की हिंदू-मुस्लिमों की अनोखी परंपरा जारी है। करीब 200 किलो चावल और 60 किलो घी, गुड़, काजू बादाम से तैयार होने वाली देग को लूटने के लिए हजारों लोगों का जमावड़ा लगता है। शाम के समय उबलते चावल को बड़े बर्तन में रखा जाता है। हिंदू मुस्लिम सभी देग लूटने की घोषणा का इंतजार करते हैं। जैसे ही घोषणा होती है, सैकड़ों की संख्या में युवा बाल्टियां लेकर देग लूटने के लिए टूट पड़ते हैं। उबलते गर्म प्रसाद देग को लूटने की अनोखी परंपरा में धक्का-मुक्की और जबरदस्त लूटमार होती है लेकिन यहां ना कोई झगड़ता है और ना ही कोई घायल होता है। इसे ईश्वरीय चमत्कार कहा जाता है। इस परंपरा को देखने हजारों लोग पहुंचते हैं। देश का एकमात्र आयोजन जहां हिन्दू-मुस्लिम एकसाथ मानते हैं और अद्भुत आयोजन होता। 113 साल पहले शुरू हुआ था अद्भुत आयोजन हजरत जमालउद्दीन शाह कादरी रहमतुल्ला अली के नाम से वर्ष 1906 होलकर राज्य के राजस्व मंत्री रूपनानक चंद के आदेश से पिरानपीर बाबा और शीतला माता मेला लगने की शुरुआत हुई थी। आज 113 साल से जारी है। सनावद का नाम तब गुलशानाबाद हुआ करता था। राष्ट्रीय एकता का देश का एकमात्र मेला है, जहां इस तरह का अद्भुत आयोजन किया जाता है।
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