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पूर्व डिप्‍टी सीएम बोले ऐतिहासिक फैसला है इंडिया गेट पर नेता जी की प्रतिमा लगाना

बिहार के पूर्व उप मुख्‍यमंत्री सुशील मोदी ने इंडिया गेट पर नेता जी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ती लगाए जाने के फैसले को ऐतिहासिक करार दिया है। ...

बिहार के पूर्व उप मुख्‍यमंत्री सुशील मोदी ने इंडिया गेट पर नेता जी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ती लगाए जाने के फैसले को ऐतिहासिक करार दिया है। उनका कहना है कि यह फैसला देर से लिया गया। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ये फैसला देश का मान बढ़ाने वाला है। सुशील मोदी ने ट्वीट कर केंद्र सरकार के उस फैसले को ऐतिहासिक बताया जिसमें प्रधानमंत्री ने इंडिया गेट पर नेता जी की ग्रेनाइट की मूर्ति लगाने का ऐलान किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐलान किया है कि इंडिया गेट पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति लगाई जाएगी। प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट कर ये जानकारी साझा की। प्रधानतमंत्री पीएम मोदी ने ये ऐलान ऐसे वक्त पर किया। जब भारत सरकार ने इंडिया गेट पर अमर जवान ज्योति पर जलने वाली लौ को नेशनल वॉर मेमोरियल की लौ के साथ मर्ज करने का फैसला किया है। इस फैसले पर बंगाल की राजनीति के साथ कांग्रेस व अन्‍य विपक्षी दल केंद्र सरकार के पर निशाना आ है। पीएम मोदी ने ट्वीट कर कहा, ऐसे समय में जब पूरा देश नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती मना रहा है, मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि नेताजी की ग्रेनाइट से बनी भव्य प्रतिमा इंडिया गेट पर स्थापित की जाएगी। यह उनके प्रति भारत की कृतज्ञता का प्रतीक होगा। कौन थे जॉर्ज पंचम जॉर्ज पंचम यूनाइटेड किंगडम के किंग थे और ब्रिटिश भारत में 1910 से 1936 तक यहां के शासक भी थे। जॉर्ज के पिता महाराज एडवर्ड सप्तम की 1910 में मृत्यु होने पर वे महाराजा बने। वे एकमात्र ऐसे सम्राट थे जो कि दिल्ली दरबार में आए। जहां उनका भारतीय राजमुकुट से राजतिलक हुआ। जॉर्ज की मौत प्लेग और अन्य बीमारियों की वजह से मौत हो गई थी। जॉर्ज ने प्रथम विश्व युद्ध में अहम भूमिका निभाई थी। उस दौरान वो ऐसे किंग थे, जिन्होंने अस्पताल,फैक्ट्रियों का दौरा किया था। जिसके बाद उनका जनता में सम्‍मान बढ़ गया था। साथ ही इंडिया गेट का भी विश्व युद्ध से कनेक्शन है, इसलिए उनकी मूर्ति यहां लगाई गई थी। इंडिया गेट स्मारक ब्रिटिश सरकार द्वारा 1914-1921 के बीच जान गंवाने वाले ब्रिटिश भारतीय सेना के सैनिकों की याद में बनाया गया था। करीब अपने फ्रांसीसी समकक्ष उन 70,000 भारतीय सैनिकों की याद दिलाता है। जिन्होंने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सेना के लिए लड़ते हुए अपनी जान गंवा दी थी। इस स्मारक में 13,516 से अधिक ब्रिटिश और भारतीय सैनिकों के नाम हैं जो पश्चिमोत्तर सीमांत अफगान युद्ध 1919 में मारे गए थे।


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