अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद से वहां फंसे भारतीयों की वतन वापसी कराई जा रही है। यूपी के चार युवक भी काबुल से घर वापस लौट आए हैं। उ...

अफगानिस्तान से भारत लौटने के बाद हर कोई अपनी दास्तां सुना रहा है। तालिबान के कब्जे के बाद काबुल के आंखोंदेखा हाल बता रहा है। सोमवार को यूपी के चार युवक भी अपने-अपने घर लौट आए। घरवालों ने इस मौके पर मिठाई खिलाकर जश्न मनाया। पढ़िए अफगानिस्तान से भारत लौटने के किस्से-

अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद से वहां फंसे भारतीयों की वतन वापसी कराई जा रही है। यूपी के चार युवक भी काबुल से घर वापस लौट आए हैं। उन्हें सकुशल देखकर घरवालों की मुस्कान भी लौट आई है। किसी ने घर लौटकर बहनों के साथ रक्षाबंधन मनाया तो कोई अभी भी काबुल से देश लौटने के लिए जद्दोजहद को भूल नहीं पा रहा है। शाहजहांपुर निवासी एक शख्स ने बताया कि कैसे जान बचाने के लिए वह और उसके साथी 30 किमी तक पैदल चलकर दूतावास पहुंचे। काबुल की सड़कों पर कैसे जगह-जगह तालिबान के लड़ाके खड़े हुए हैं। यह सब बताते हुए उनके चेहरे पर अपने वतन वापस लौटने का सुकून भी झलकता है।
माला पहनाकर स्वागत, बंधवाई राखी

काबुल स्थित खान स्टील कंपनी में फंसे जौनपुर के मयंक कुमार सिंह भी अपने घर पहुंच गए हैं। उसे देख घरवालों समेत ग्रामीणों के चेहरे पर मुस्कान तैर गई। घर लौटने पर घरवालों ने माला पहनाकर स्वागत किया तो बहनों ने राखी बांधी। मयंक नवंबर 2018 में काबुल गए थे। कंपनी में वह महाप्रबंधक पद पर रहे। इसी साल जून माह में घर आना चाहते थे, लेकिन किन्हीं कारणों से नहीं आ पाए। इधर, अफगानिस्तान में बिगड़े हालात में वह भी फंस गए थे।
अपनों को सलामत देख खुश हुए घरवाले

काबुल में फंसे आजमगढ़ के नरावं गांव निवासी धर्मेंद्र चौहान भी सोमवार दोपहर अपने घर पहुंचे। काबुल एयरपोर्ट के समीप ही एक स्टील प्लांट में फंसे 27 भारतीयों में धर्मेंद्र चौहान भी शामिल थे। घर पहुंचते ही धर्मेंद्र ने माता मुलरी देवी का पैर छूकर आशीर्वाद लिया। धर्मेंद्र को सही सलामत देख परिजनों की खुशी देखते ही बनी।
'30 किमी. पैदल चलकर पहुंचे दूतावास'

अफगानिस्तान से सोमवार को वापस लौटे शाहजहांपुर निवासी जीत बहादुर थापा घर पहुंचने तक की दास्तां सुनाई। चिनोर गांव के मूल निवासी जीत बहादुर ढाई साल से अफगानिस्तान की कंसलटेंसी कंपनी आईडीसीएस में सुपरवाइजर के पद पर थे। इस कंपनी में भारत के 118 लोग उनके मातहत काम करते हैं। वह बताते हैं कि 15 अगस्त से एक सप्ताह पहले से वह और उनके सहकर्मी तालिबान के काबुल को घेर लिए जाने से भयभीत थे। सभी 118 लोग आपसी सलाह-मशविरे के बाद 15 अगस्त को शाम 6 बजे डेनमार्क दूतावास के लिए पैदल रवाना हुए।
एक लाख रुपये और सारा सामान लूट लिया

जीत बहादुर ने बताया, 'हम लोग गली कूचों में जा रहे थे। तालिबान का भय भी था। इसी बीच, कुछ लुटेरों ने हम सभी को रोक लिया। हमारे पास मौजूद करीब एक लाख रुपये और बाकी सारा सामान लूट लिया। दूतावास से कुछ दूर पहले ही तालिबान के कुछ सदस्य आ गए। उन्होंने पूछा कि क्या तुम लोग हिंदू हो। खुद को भारतीय नागरिक बताए जाने पर उन्होंने हमें जाने दिया। अपने साथ हुई लूटपाट की घटना के बारे में बताने पर तालिबान ने कहा कि वे नहीं, अफगानिस्तान के स्थानीय लुटेरे लूटपाट कर रहे हैं।' थापा ने बताया कि वह और उनके साथी 30 किमी का पैदल सफर तय करके रात में ही डेनमार्क दूतावास पहुंच गए। 18 अगस्त को वे सेना के हवाईअड्डा क्षेत्र में पहुंचे। वहां मौजूद तालिबान बंदूकधारियों ने सभी भारतीयों को करीब 5 घंटे तक एक खुली जगह में जमीन पर बैठाया।
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'अफगानिस्तान में महिलाएं और बच्चे काफी डरे हुए'

उसके बाद नाटो सेना ने जीत बहादुर और उनके साथियों अपनी सुरक्षा में ले लिया। इसी बीच सेना का एक हवाई जहाज आया। उसमें बैठकर वह और उनके सभी साथी 22 अगस्त की सुबह दिल्ली पहुंच गए। अफगानिस्तान में अघोषित कर्फ्यू जैसा माहौल है। सभी कंपनियां और दफ्तर बंद हैं। घरों से कोई भी बाहर नहीं निकल रहा है। जीत ने बताया, 'तालिबान महिलाओं के साथ अत्याचार नहीं कर रहे हैं। यह गलत खबरें हैं। न ही बच्चों के साथ कोई ऐसा हादसा हो रहा है। हां, इतना जरूर है कि अफगानिस्तान में महिलाएं और बच्चे काफी भयभीत हैं। कोई भी महिला सड़क पर नजर नहीं आ रही है। थापा ने बताया कि तालिबान लगातार सड़कों पर घूम रहे हैं, जिसके चलते भय का माहौल है। तालिबान मुल्क के लोगों से लगातार अपील कर रहे हैं कि कोई भी व्यक्ति अफगानिस्तान छोड़कर न जाएं। वे किसी को कोई परेशानी नहीं होने देंगे।
घर लौटने की खुशी में आंखों से छलके आंसू

अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद काबुल में फंसे पूर्वांचल के आजमगढ़, चंदौली और जौनपुर के तीन युवक भी सोमवार को घर लौटे। चंदौली जिले के मुगलसराय कोतवाली के अमोघपुर गांव के रहने वाले सूरज (29) सोमवार सुबह घर लौटे तो सभी ने जश्न मनाया। बेटे को सही सलामत देख पिता बुद्धिराम चौहान की आंखों में खुशी के आंसू रुक नहीं रहे थे। उधर, सूरज के घर पहुंचने की खबर मिलते ही गांव वालों की भीड़ जुट गई। सभी ने सूरज का मुंह मीठा कराया। वेल्डर का काम करने वाला सूरज जनवरी 2021 में काबुल गया था।
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