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इंदिरा गांधी ने वीर सावरकर के नाम जारी किया था डाक टिकट, कांग्रेस को फिर क्यों है इतनी तकलीफें?

नई दिल्ली भारत की राजनीति में समय-समय पर आजादी के नायकों पर विवाद होता रहा है। इस वक्त इस विवाद के मुख्य केंद्र बिंदु में हैं वीर सावरकर।...

नई दिल्ली भारत की राजनीति में समय-समय पर आजादी के नायकों पर विवाद होता रहा है। इस वक्त इस विवाद के मुख्य केंद्र बिंदु में हैं वीर सावरकर। भाजपा का आजादी का नायक बताता है तो कांग्रेस हमेशा से ही वीर सावरकर पर अंग्रेजों से माफी मांगने का आरोप लगाती रही है। इसके चलते पहले भी कई बार विवाद होता रहा है। अब ताजा विवाद बिहार की आरजेडी के बयान पर है। आरजेडी ने कुछ दिनों पहले ही एक विवादित ट्वीट किया। लेकिन इतिहास के पन्नों को अगर हम कुरेंदे तो याद आता है कि खुद इंदिरा गांधी ने ही वीर सावरकर पर डाक टिकट और अपने खाते से कुछ पैसा डोनेट किया था। आरजेडी ने सावरकर को बताया गद्दारआरजेडी ने ट्विटर पर लिखा, 'गद्दार सावरकर के संघी डरपोक कार्यकर्ता जिन्हें ना इतिहास की जानकारी है और ना वर्तमान की। ये कथित जन्मजात सर्वश्रेष्ठ लोग सदा से पीठ दिखा देश से गद्दारी करते आए है। नमकहरामी इनके खून में है।' सियासत में इस वक्त वीर सावरकर को लेकर तमाम राजनेताओं और उनकी राजनीतिक पार्टियों के बयान आ रहे हैं। कांग्रेस के तमाम नेता पहले भी वीर सावरकर पर गंभीर आरोप लगाते रहे हैं। खुद पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी ने दिल्ली के रामलीला मैदान में 'रेप इन इंडिया' वाले विवादित बयान पर माफी नहीं मांगने की बात करते हुए वीर सावरकर का जिक्र किया था। राहुल गांधी ने कहा था, 'मैं वीर सावरकर नहीं हूं, मेरा नाम राहुल गांधी है, मैं माफी नहीं मांगूंगा।' इंदिरा गांधी ने जारी किया था डाक टिकटतकरीबन दो साल पहले साल 2018 के अक्टूबर माह की बात है कि जब पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और भाजपा आईटी सेल के मुखिया अमित मालवीय वीर सावरकर और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से जुड़े एक मसले पर एकराय थी। अमित मालवीय ने एक ट्वीट किया था, जिसमें एक इमेज पोस्ट की गई थी। जिसमें इंदिरा गांधी और वीर सावरकर की तस्वीरें दिखाई दे रही हैं। इस इमेज में इंदिरा गांधी के वीर सावरकर के बारे में दिया गया बयान दिखाई दे रहा है। जिसमें इंदिरा गांधी ने कहा था कि सावरकर द्वारा ब्रिटिश सरकार की आज्ञा का उल्लंघन करने की हिम्मत करना हमारी आजादी की लड़ाई में अपना अलग ही स्थान रखता है। वीर सावरकर ट्रस्ट को दिया था पैसाइस तस्वीर में एक और बात बताई गई कि इंदिरा गांधी ने महान स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर के योगदान को पहचाना था। उन्होंने साल 1970 में वीर सावरकर के सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया था। इसके साथ पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सावरकर ट्रस्ट में अपने निजी खाते से 11,000 रुपए दान किए थे। इतना ही नहीं इंदिरा गांधी ने साल 1983 में फिल्म डिवीजन को आदेश दिया था कि वह ‘महान क्रांतिकारी’ के जीवन पर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाएं।' कांग्रेस वीर सावरकर को कहती है बुजदिलअब सवाल यहां पर ये उठता है कि क्या कांग्रेस और इंदिरा गांधी की विचारधाराएं अलग हैं या फिर ये मौकापरस्त राजनीति है। कांग्रेस हमेशा से ही वीर सावरकर पर कई आरोप लगाती रही है जिसमें अंग्रेजों से माफी मांगने वाला आरोप हमेशा सुर्खियों में रहा है। लेकिन इससे पहले भोपाल में कांग्रेस सेवादल का राष्ट्रीय प्रशिक्षण शिविर हुआ था। इसमें एक किताब का विरतरण भी किया था। इस प्रशिक्षण शिविर में बांटी गई बुकलेट 'वीर सावरकर, कितने वीर' में डॉमिनिक लापिए और लैरी कॉलिन्स की किताब 'फ्रीडम एट मिडनाइट' के हवाले से दावा किया गया है कि वीर सावरकर के नाथूराम गोडसे के साथ समलैंगिक संबंध थे। जिसके बाद काफी बवाल हुआ था। केंद्रीय मंत्री राजनाथ के बयान से शुरू हुआ विवादएक दिन पहले यानी बुधवार को संघ प्रमुख मोहन भागवत ने विनायक दामोदर सावरकर पर लिखी एक नई किताब के विमोचन के मौके पर उन्हें एक ऐसी हस्ती बताया जिन्हें हमेशा बदनाम करने की कोशिश की गई। उसी कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह ने वीर सावरकर को महान नेता और स्वतंत्रता सेनानी बताया। उन्होंने यह भी दावा किया कि गांधीजी के कहने पर ही सावरकर ने अंग्रेजों के सामने 'दया की गुहार' लगाई थी। सावरकर कभी भी आरएसएस या जनसंघ (अब बीजेपी) के सदस्य नहीं रहे लेकिन हिंदुत्व की विचारधारा की वजह से संघ और बीजेपी में उनका नाम बहुत सम्मान से लिया जाता है। हाल के वर्षों में खासकर 2014 के बाद बीजेपी सावरकर को लेकर बहुत आक्रामक हुई है और वामपंथी इतिहासकारों पर जानबूझकर सावरकर के 'चरित्र हनन' का आरोप लगाती रही है। वीर सावरकर को दी गईं यातनाएंये एक बड़ी बहस का विषय है कि क्या वीर सावरकर ने मांफी मांगी या फिर उनसे माफी मांगने की सलाह महात्मा गांधी ने दी थी। जैसा इतिहास में दर्ज है कि सावरकर को 1910 में नासिक के कलेक्टर जैकसन की हत्या के आरोप में लंदन में गिरफ्तार किया गया था। 1911 में उन्हें अंडमान की सेल्युलर जेल में डाल दिया गया जिसे काला पानी की सजा कहते हैं। काला पानी के दौरान कैदियों को ऐसी अमानवीय यातनाएं दी जाती थीं, जिसे सुनकर रूह कांप जाए। कोल्हू में बैल की जगह कैदियों का इस्तेमाल, महीनों तक बेड़ियों में जकड़े रखना, अंग्रेज अफसरों की बग्घियों को खिंचवाना, कोड़ों से पिटाई और कुनैन पीने के लिए मजबूर किए जाने जैसी यातनाएं दी जाती थीं। जेल की कोठरियां बदबूदार थीं, शौचालय जाने के लिए समय तय था। कैदियों को रिश्तेदारों से मिलने की इजाजत नहीं थी। सावरकर 1921 तक सेलुलर जेल में ये यातनाएं सहते रहे। इस दौरान उन्होंने 6 बार ब्रिटिश सरकार के पास दया याचिका भेजी। इतिहासकाल की कलम से इतिहासकार विक्रम संपत ने 'सावरकर : इकोज फ्रॉम अ फॉरगॉटेन पास्ट' में उनकी दया याचिकाओं को लेकर विस्तार से लिखा है। उन्होंने लिखा है कि सावरकर की राय थी कि एक क्रांतिकारी का पहला फर्ज खुद को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद रखना है। सावरकर के आलोचक इसे अंग्रेजों के सामने उनके सरेंडर के रूप में देखते हैं तो उनके प्रशंसक इसे उनकी रणनीति का हिस्सा बताते हैं ताकि वह बाहर आकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई जारी रख सकें। महात्मा गांधी की हत्या में भी सावरकर का नाम आया था। 1949 में उन्हें इस आरोप में गिरफ्तार किया गया लेकिन कोर्ट में उनके खिलाफ केस टिक नहीं पाया और वह कोर्ट से बरी कर दिए गए। 26 फरवरी 1966 को 82 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। सभी का योगदान फिर जिक्र कुछ का क्योंभारत की राजनीति में देश के तमाम व्यक्तित्वों का जिक्र हमेशा होता रहता है। आजादी की जंग किसी एक व्यक्ति ने नहीं लड़ी। ये लड़ाई ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ एकजुट होकर लड़ी गई। इस लड़ाई को लड़ने वालों की विचारधाराएं, धर्म, पंथ ये सब अलग था मगर सबका मकसद था देश के आजाद करना। मंजिल जब सबकी एक ही थी तो सभी ने अपने-अपने हिसाब से अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंका था। गांधी जी ने अहिंसा को अपना हथियार बनाया था तो चंद्र शेखर आजाद ,भगत सिंह, अशफाकउल्ला खां, सहित सैकड़ों आजादी के नायकों के रास्ते अलग थे।


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