पटनाआजादी के बाद 'लोकनायक' जेपी (जयप्रकाश नारायण) इंदिरा गांधी को बेटी समान स्नेह करते थे, लेकिन अगर वह नहीं होते तो इंदिरा गांधी को...

जेपी यानी जयप्रकाश नारायण का जन्म 11 अक्टूबर 1902 को बिहार-यूपी सीमा पर बसे सिताब दियारा गांव में हुआ था। पटना से शुरुआती पढ़ाई के बाद अमेरिका में स्टडी करने पहुंचे। 1929 में देश वापस लौटे और स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय हो गए। महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू से मिलने के बाद उनका नजरिया बदल गया।

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आजादी के बाद 'लोकनायक' जेपी (जयप्रकाश नारायण) इंदिरा गांधी को बेटी समान स्नेह करते थे, लेकिन अगर वह नहीं होते तो इंदिरा गांधी को कोई हरा भी नहीं पाता। आज उन्हीं जेपी की जयंती है। अपने जन्मदिवस से ठीक 2 दिन पहले 1979 में जेपी ने इस संसार को अलविदा कह दिया था।
1920 में शादी...आजीवन ब्रह्मचर्य

प्रभावती की एक शपथ ने जेपी के व्यक्तित्व के एक और पहलू को उजागर किया। 1920 में हुई शादी के कुछ साल बाद ही प्रभावती ने ब्रह्मचर्य व्रत ले लिया। जेपी शुरू में इसके समर्थन में नहीं थे, लेकिन अपनी पत्नी की इच्छा का मान रखते हुए जेपी ने भी उनके साथ ब्रह्मचर्य व्रत का पालन किया। यह अनोखी घटना थी, क्योंकि इससे पहले केवल स्त्रियां ही अपने पति का अनुसरण करते हुए ब्रह्मचर्य का पालन करने के संदर्भ मिलते हैं। जैसे, गांधी के लिए कस्तूरबा ने और रामकृष्ण परमहंस के लिए मां शारदा ने ब्रह्मचर्य निभाया।
इंदिरा गांधी को बेटी मानते थे जयप्रकाश

इंदिरा को हराने वाले जेपी की पत्नी प्रभावती...इंदिरा को अपनी बेटी मानती थीं, क्योंकि वह उनकी सखी कमला नेहरू की बेटी थीं। कहते हैं कि अगर प्रभावती जीवित रहतीं तो शायद जेपी यह आंदोलन ही नहीं खड़ा कर पाते। 1973 में कैंसर से प्रभावती की मौत के बाद जेपी बहुत अकेले पड़ गए। इस पीड़ा से उबरने में जेपी को करीब एक साल लग गया और उसके बाद जेपी ने जो आंदोलन खड़ा किया, उसने इतिहास रच दिया।
संपूर्ण आंदोलन शुरू करने से पहले जेपी की शर्त

जयप्रकाश नारायण...इंदिरा गांधी की प्रशासनिक नीतियों के खिलाफ थे। 1974 में ही पटना में छात्रों ने आंदोलन की शुरुआत की। यह शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक रहेगा, इस शर्त पर जेपी ने उसकी अगुवाई करना मंजूर किया। गिरते स्वास्थ्य के बावजूद जेपी इस आंदोलन से जुड़े और यह आंदोलन बाद में बिहार में सरकारी भ्रष्टाचार के खिलाफ बड़ा आंदोलन बनकर उभरा और आखिर में जेपी के कारण ही यह आंदोलन 'संपूर्ण क्रांति' आंदोलन बना। जेपी के आंदोलन से ही मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार जैसे राजनीति के धुरधंरों का जन्म हुआ। उनके नेतृत्व में पीपल्स फ्रंट ने गुजरात राज्य का चुनाव जीता।
जेपी ने इंदिरा का सूपड़ा साफ कर दिया

संपूर्ण क्रांति के बाद देश में जो सरकार विरोधी माहौल बना और इंदिरा गांधी का सत्ता में रहना मुश्किल होने लगा तो 1975 में इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की। जिसके तहत जेपी सहित 600 से भी अधिक विरोधी नेताओं को बंदी बनाया गया और प्रेस पर सेंसरशिप लगा दी गई। जेल मे जेपी की तबीयत और भी खराब हुई। 7 महीने बाद उनको छोड़ दिया गया। इमरजेंसी के 19 महीने देश के इतिहास में काले पन्नों के तौर पर दर्ज हो गए। गुर्दे खराब हो जाने के कारण डायलिसिस पर चल रहे जेपी ने चुनाव की चुनौती मंजूर की। मार्च 1977 के चुनाव में उत्तर भारत से कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया। इंदिरा और संजय, दोनों चुनाव हार चुके थे। यह 5 साल से चल रहे जेपी के इंदिरा विरोध का नतीजा था।
1977 में जीत के बावजूद रो रहे थे जेपी

1977 में जेपी के आंदोलन के फलस्वरूप इंदिरा को हराकर जब जनता पार्टी सत्ता में पहुंची तो 24 मार्च को दिल्ली के रामलीला मैदान में विजय रैली का आयोजन किया गया, लेकिन खुद जेपी ही उस रैली में नहीं पहुंचे। अपनी राजनीतिक विजय के सबसे बड़े दिन जेपी गांधी शांति प्रतिष्ठान से निकलकर रामलीला मैदान जाने की जगह सफदरजंग रोड की एक नंबर कोठी में गए, जहां पहली बार हारी हुई इंदिरा बैठी थीं। जेपी से मिलकर इंदिरा के आंसू आ गए, लेकिन उससे भी ज्यादा हैरत की बात थी कि अपनी पराजित पुत्री के सामने जीते हुए जेपी भी रो रहे थे।
मौत की खबर पर जब मुस्कुरा दिए थे जेपी

8 अक्टूबर 1979 को दिल की बीमारी और डायबीटीज के कारण पटना में जेपी की मृत्यु हो गई। तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने लोकनायक की मृत्यु पर 7 दिन के राष्ट्रीय शोक की घोषणा की थी। उनकी मृत्यु से भी जुड़ा एक किस्सा यह है कि उनकी मृत्यु के पहले ही तत्कालीन प्रधानमंत्री ने गलती से उनकी मौत की घोषणा कर दी थी, जिससे पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई थी। उस समय जेपी हॉस्पिटल में भर्ती थे। जब उन्हें इस बारे में पता चला तो मुस्कुरा दिए।
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