पटना/गोवा/दिल्ली देश के सबसे मशहूर चुनावी रणनीतिकार ने कांग्रेस को लेकर 'भविष्यवाणी' की है। प्रशांत की 'भविष्यवाणियों' पर...

पटना/गोवा/दिल्ली देश के सबसे मशहूर चुनावी रणनीतिकार ने कांग्रेस को लेकर 'भविष्यवाणी' की है। प्रशांत की 'भविष्यवाणियों' पर गौर करना इसलिए भी जरूरी हो जाता है कि चुनाव प्रबंधन के मामले में अब तक वो सफल रहे हैं। कहा जा रहा है ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस गोवा में अपना 'बेस' बनाना चाह रही है, उसी सिलसिले में प्रशांत किशोर पसीने बहा रहे हैं। बातचीत के दौरान उन्होंने पीएम मोदी की जीत और कांग्रेस की हार पर अहम बातें कही। 2054 तक BJP सत्ता में रहेगी? प्रशांत किशोर ने पूरे बातचीत में बीजेपी को मजूबत और कांग्रेस को कमजोर बताया है। वो ये कहना चाहते हैं कि कांग्रेस की रणनीति सही नहीं है। पीके ने कहा कि 'कांग्रेस के लिए 40 सालों तक था, वैसे ही बीजेपी के लिए भी है, वो कहीं नहीं जा रही है। अगर आपने राष्ट्रीय स्तर पर एक बार 30 फीसदी वोट हासिल कर लिए हैं तो आप आसानी से नहीं जाएंगे।' इसका मतलब ये हुआ कि अगले कई चुनावों तक बीजेपी सत्ता में बनी रहेगी। वो सीधे-सीधे सोनिया और राहुल गांधी की रणनीति पर सवाल उठा रहे थे। कांग्रेस की रणनीति पर 'PK सवाल' कुछ सप्ताह पहले तक राहुल और प्रियंका गांधी के साथ प्रशांत किशोर की बैठकें होती थी। कांग्रेस को मजबूत बनाने की रणनीतियां बनाई जा रही थी। 2024 लोकसभा चुनाव में मोदी को परास्त करने के लिए मोहरे बैठाए जा रहे थे। अनुमान लगाया जा रहा था कि कांग्रेस में प्रशांत की कोई बड़ी भूमिका हो सकती है। मगर अचानक यूपी के लखीमपुर खीरी हिंसा को लेकर प्रशांत किशोर के दिए बयान के बाद पार्टी और प्रशांत किशोर के रिश्तों में तनाव आना शुरू हुआ। उन्होंने लिखा था कि 'जिन लोगों को लगता है कि लखीमपुर-खीरी हादसे के बाद जीओपी (ग्रैंड ओल्ड पार्टी) के नेतृत्व वाले विपक्ष का पुनरुद्धार होगा, उन्हें निराशा होने वाली है। जो समस्याएं काफी दिनों से है, उनका हल आसानी से नहीं होता।' प्रशांत ने सीधे-सीधे प्रियंका गांधी पर सवाल उठाया था। चूंकि यूपी में अगले साल चुनाव है और प्रियंका आजकल काफी ऐक्टिव हैं। लंबे वक्त से राज्य में कांग्रेस सत्ता से बाहर है और ग्राउंड लेवल पर संगठन काफी कमजोर है। प्रशांत किशोर पर कांग्रेस का पलटवार प्रशांत किशोर के बयान पर कांग्रेस आईटी सेल के राष्ट्रीय अध्यक्ष रोहन गुप्ता ने पलटवार किया है। उन्होंने ट्विटर पर प्रशांत किशोर की तस्वीर शेयर कर कहा कि 'कांग्रेस में पद पाने की गुहार लगा रहे थे और जब नहीं मिला तो फिर भाजपा की चरण वंदना शुरू कर दिए। एक और भक्त का मुखौटा उतर गया है।' कांग्रेस विरोधी पार्टियों में फिट प्रशांत वैसे प्रशांत किशोर की चुनावी रणनीतिकार के तौर पर पूरे करियर को देखें तो 2014 से अब तक एक मात्र पंजाब ऐसा राज्य है जहां उन्होंने कांग्रेस पार्टी के लिए स्ट्रैटजी बनाया। या यूं कहें कि कांग्रेस ने उनकी सेवाएं ली। बिहार चुनाव (2015) में नीतीश और लालू के साथ कांग्रेस पहले से थी। बाद में गठबंधन टूट गया। पंजाब में अमरिंदर सिंह अब सीएम नहीं रहे। 2017 में यूपी के लिए कांग्रेस ने प्रशांत की सेवाएं ली, मगर बीच में ही खटक गया। इसके अलावा पूरे देश में प्रशांत ने कांग्रेस विरोधी पार्टियों के लिए कैंपेन किया। चाहे वो बंगाल हो या फिर अब गोवा। गद्दी दिलाए मगर संबंध नहीं निभा पाए वैसे प्रशांत किशोर के पुराने रिकॉर्ड को देखें तो उन्होंने 2014 में बीजेपी के लिए काम किया। गुजरात के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी को दिल्ली की गद्दी पर बैठा दिया। बाद में उनकी नीतियों की आलोचना करने लगे। आखिरकार संबंध टूट गया। 2015 में नरेंद्र मोदी के धुर विरोधी के लिए पीके ने खूब मेहनत की। मोदी लहर में प्रशांत की रणनीतियों की वजह से नीतीश कुमार अपनी कुर्सी बचा ले गए। मगर तीन साल में दोनों के रिश्ते खराब हो गए। यहां भी नीतीश की नीतियों की आलोचना करने लगे। आखिकार संबंध टूट गए। इसके बाद भी प्रशांत की कामयाबियों का सिलसिल जारी रहा। उत्तर से लेकर दक्षिण तक विजय पताका फहराते रहे। फिलहाल ममता बनर्जी के लिए गोवा में 'आधार' तैयार करने में जुटे हैं। क्योंकि अगले साल वहां विधानसभा चुनाव है और कांग्रेस कमजोर है। पीके की नीतीश से क्यों बनी दूरियां? 2014 लोकसभा चुनाव प्रचार को प्रशांत किशोर ने 'मोदी लहर' में तब्दील कर दिया था। 2015 में उन्होंने मोदी के धुर विरोधी नीतीश कुमार को बिहार का मुख्यमंत्री बनवा दिया। इस तरह के कई रिकॉर्ड प्रशांत किशोर के नाम है। 2018 में प्रशांत ने जेडीयू से सियासी पारी का आगाज किया। नीतीश कुमार ने इन्हें बिहार का भविष्य बताया। बाद में आरजेडी और कांग्रेस से रिश्ते तोड़कर बीजेपी के साथ सरकार चलाने लगे। यहीं से पीके और नीतीश में मनमुटाव शुरू हो गया। मगर दिखता नहीं था। इसी बीच 2019 में प्रशांत किशोर ने बयान दिया कि 'आरजेडी से गठबंधन तोड़ने के बाद नीतीश कुमार को नैतिक रूप से चुनाव में जाना चाहिए था, न कि बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनानी चाहिए थी।' इतने बड़े फैसले पर प्रशांत का सवाल उठाना नीतीश को तीर की तरह चुभ गया। इसके बाद पार्टी में साइडलाइन चल रहे ललन सिंह और आरसीपी सिंह ने गोटियां सेट कर दी। नीतीश के आंखों के तारे बने पीके कांटे की तरह चुभने लगे। नागरिकता संशोधन कानून ने मनमुटाव को खाई में तब्दील कर दिया। इस मसले पर जेडीयू मोदी सरकार के साथ खड़ी रही। मगर दूसरी बार प्रशांत ने नीतीश कुमार के फैसले पर सवाल उठा दिया। पीके की छवि नीतीश की नजर में और बिगड़ गई। तब तक पीके ने दिल्ली में आम आदमी पार्टी के प्रचार की कमान संभाल ली थी। बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। नीतीश सरकार पर भी सवाल खड़े करने लगे। आखिरकार जनवरी 2020 में नीतीश कुमार ने कहा कि 'अमित शाह के कहने पर प्रशांत किशोर को पार्टी में लिया था और उन्हें पार्टी से बाहर जाना है तो जा सकते हैं।' इस पर पीके ने जवाब दिया कि 'झूठ मत बोलिए।' इस तरह प्रशांत की सियासी पारी खत्म हो गई। ...तो इसलिए पीएम मोदी जीत रहे चुनाव! प्रशांत किशोर ने कहा कि 'भारतीय राजनीति के केंद्र में बीजेपी बने रहने वाली है। वो जीते या हारे फर्क नहीं पड़ेगा। जैसा कांग्रेस के लिए 40 सालों तक था, वैसे ही बीजेपी के लिए भी है, वो कहीं नहीं जा रही है। अगर आपने राष्ट्रीय स्तर पर एक बार 30 फीसदी वोट हासिल कर लिए हैं तो आप आसानी से नहीं जाएंगे। इसलिए, इस धोखे में न रहें कि लोग मोदी से नाराज हैं और वो मोदी को हरा देंगे। हो सकता है कि वो मोदी को हरा दें लेकिन बीजेपी कहीं नहीं जा रही। पार्टी आने वाले कुछ दशकों तक राजनीति में बने रहने वाली है।' चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने कहा कि 'राहुल गांधी के साथ शायद यही समस्या है कि उन्हें लगता है कि वक्त की बात है, लोग आपको सत्ता से निकाल फेंकेंगे। ऐसा नहीं होने वाला। जब तक आप मोदी को नहीं समझेंगे, उनकी ताकत को नहीं समझेंगे। आप उन्हें हराने की रणनीति नहीं तैयार कर सकेंगे। मैं जो समस्या देख रहा हूं वो ये है कि लोग न तो उनकी ताकत समझ रहे हैं और न ही ये कि वो क्या बात है जो उन्हें पॉपुलर बना रही है। जब तक आप ये नहीं जानेंगें आप उन्हें हरा नहीं सकते।'
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