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बिहार के कुलपतियों के पीछे क्यों पड़ा CMO, पटना राजभवन से क्या है कनेक्शन? पढ़ें इनसाइड स्टोरी

पटना बिहार में आज कल 'बड़े लोग' यूनिवर्सिटी-यूनिवर्सिटी और वीसी-वीसी खेल रहे हैं। ठीक उसी तरह जैसे बच्चे घर-घर खेलते हैं। इस पूरे...

पटना बिहार में आज कल 'बड़े लोग' यूनिवर्सिटी-यूनिवर्सिटी और वीसी-वीसी खेल रहे हैं। ठीक उसी तरह जैसे बच्चे घर-घर खेलते हैं। इस पूरे खेल की कंट्रोलिंग राजभवन के पास है। मुख्यमंत्री ऑफिस की उस पर टेढ़ी नजर है। पूरे खेल में ऐसा लग रहा है कि और राजेंद्र प्रसाद जैसे लोगों को मोहरा बनाया जा रहा है। LNMU के VC सुरेंद्र प्रताप सिंह पर आरोप मूलत: फैजाबाद (उत्तर प्रदेश) के रहनेवाले सुरेंद्र प्रताप सिंह (SP Singh) पर पटना के मौलाना मजहरुल हक अरबी फारसी विश्वविद्यालय और दरभंगा के ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय में टेंडर घोटाले का आरोप है। जबकि आर्यभट्ट यूनिवर्सिटी में एफलीएशन में गड़बड़ी का इल्जाम है। आरोप लगा है कि LNMU के कुलपति रहते हुए प्रफेसर सुरेंद्र प्रताप सिंह ने गलत ढंग से टेंडर को एलॉट किया। उसमें करोड़ों के वारे-न्यारे किए। कुलपति सुरेंद्र प्रताप सिंह की हैसियत जान लीजिए सुरेंद्र प्रताप सिंह की हैसियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि ये बिहार के पांच-पांच यूनिवर्सिटी को संभाल चुके हैं। इनमें पटना का मौलाना मजहरुल हक अरबी फारसी विश्वविद्यालय, पटना विश्वविद्यालय, आर्यभट्ट यूनिवर्सिटी, पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय और दरभंगा के ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय शामिल है। मौलाना मजहरुल हक अरबी फारसी विश्वविद्यालय, LNMU और आर्यभट्ट यूनिवर्सिटी में गड़बड़ियों का कच्चा चिट्ठा सामने आ चुका है। बाकी विश्वविद्यालयों में भी पड़ताल की जा रही है। लखनऊ में गलत नियुक्ति करने पर एफआईआर सुरेंद्र प्रताप सिंह पर फर्जीवाड़े के आरोप का ये कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति रहते हुए गलत तरीके से नियुक्ति का एफआईआर लखनऊ के थाने में दर्ज है। बाद में उस महिला प्रफेसर को बर्खास्त किया गया। प्रफेसर कुद्दुस को कोर्ट में घसीटने की धमकी सवालों के घेरे में आए LNMU के कुलपति एसपी सिंह ने आरोपों पर सफाई भी दी। उन्होंने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि 'मुझे साजिश के तहत फंसाया गया है। मौलाना मजहरुल हक अरबी फारसी विश्वविद्यालय के वीसी प्रोफेसर कुद्दुस के खिलाफ कोर्ट जाने की बात कही। आरोपों को झूठा और मनगढ़ंत बताया। उन्होंने कहा कि मेरे राज्य से बाहर रहने के समय प्रफेसर कुद्दुस ने काम करना शुरू किया और बिना प्रभार लिए विश्वविद्यालय में जिम्मेदारी संभाल ली। टेंडर में गड़बड़ी, कॉपी खरीद मामले को लेकर अनभिज्ञता जताई। उन्होंने प्रेस रिलीज में जरिए कहा कि बिल का भुगतान कुद्दुस ने किया। अगर गड़बड़ी थी तो टेंडर रद्द किया जा सकता था। बेस्ट वीसी का अवार्ड पहले से तय था, एक दिन पहले 22 नवंबर को आरोप लगाना साजिश का हिस्सा है। वीसी सुरेंद्र प्रताप सिंह का यूपी कनेक्शन सुरेंद्र प्रताप सिंह की कुलपति बनने की करियर की शुरुआत नवंबर 2016 में शुरू हुई। जिस लखनऊ यूनिवर्सिटी के छात्र थे, उसी के वाइस चांसलर बन गए। फैजाबाद से पढ़ाई करनेवाले एसपी सिंह ने 'वीसीगीरी' का ऐसा किला गाड़ा कि यूपी से बिहार तक इनकी तूती बोलने लगी। राजभवन के चहेता बन गए। बिहार के बेस्ट वीसी का अवार्ड लेने, भ्रष्टाचार के आरोप लगने और छुट्टी पर जाने से पहले सुरेंद्र प्रताप सिंह दरभंगा के ललित नारायण यूनिवर्सिटी के कुलपति की जिम्मेदारी संभाल रहे थे। तभी टेंडर घोटाले में इनकी कुंडली खुल गई। इसकी आंच राजभवन तक पहुंच चुकी है। सुरेंद्र प्रताप सिंह से पहले राजेंद्र प्रसाद पर शिकंजा फैजाबाद वाले सुरेंद्र प्रताप सिंह से पहले गोरखपुर वाले राजेंद्र प्रसाद की भी भ्रष्टाचार की जांच की जा रही है। इनके घर से करीब एक करोड़ नकद के साथ गहने और कई प्लॉट के दस्तावेज मिले थे। अलग-अलग देशों की करेंसी के अलावा एक आलमारी नोट भी मिला था। करीब 30 करोड़ की गड़बड़ी का इन पर आरोप है। ये गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलपति के साथ यूपी में कई अहम पदों पर रह चुके हैं। इनकी भी कुलपति वाले करियर की शुरुआत 2016 में प्रयागराज राज्य विश्वविद्यालय के संस्थापक कुलपति बनने से शुरू हुई थी। फिर इन्होंने अपना दायरा बिहार तक बढ़ाया। अब करप्शन के इल्जामों का सामना कर रहे हैं। करप्शन, कुलपति और पर्दे के पीछे का 'खेल' फागू चौहान के राज्यपाल रहते उत्तर प्रदेश से लोगों को बुलाकर बिहार के विश्वविद्यालयों में अहम पदों पर बिठाया गया। शुरुआत में तो सबकुछ ठीक रहा। इसके बाद इनको कई-कई विश्वविद्यालयों का प्रभार दिया जाने लगा। मुख्यमंत्री कार्यालय को इसकी भनक लग गई। बिहार में जो तीन नए यूनिवर्सिटी बनाने का बिल पास हुआ, उसे राजभवन के अधिकार क्षेत्र से बाहर रखा गया। ये बात राज्यपाल फागू चौहन को खटक गई। सूत्रों के मुताबिक दोनों सदनों से पास उस बिल पर अब तक राज्यपाल फागू चौहान ने दस्तखत नहीं किया है। सदन से पास विधेयक कानून का शक्ल नहीं ले सका है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को राजभवन की ये बेरूखी रास नहीं आई है। चूंकि नीतीश कुमार का ड्रीम प्रोजेक्ट है कि राज्य में इंजीनियरिंग, मेडिकल और खेल के लिए अलग विश्वविद्यालय बने। मगर राजभवन इस पर कुंडली मारकर बैठा है।


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