दिल्ली/पटना : बिहार सरकार को सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करने से ही इनकार कर दिया। दरअसल पूरा मामला शराबबंदी क...

दिल्ली/पटना : बिहार सरकार को सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करने से ही इनकार कर दिया। दरअसल पूरा मामला शराबबंदी कानून और अग्रिम जमानत से जुड़ा हुआ है। राज्य सरकार चाहती है कि शराबबंदी कानून उल्लंघन के आरोपियों को अग्रिम जमानत न मिले। इसी को लेकर सुप्रीम कोर्ट से इस मामले पर वैधानिक टिप्पणी चाहती थी। अग्रिम जमानत पर प्रतिबंध मामले में बिहार सरकार को झटका बिहार में शराबबंदी कानून के तहत अग्रिम जमानत पर प्रतिबंध लगाने संबंधी प्रावधान की वैधानिकता पर टिप्पणी के बारे में राज्य सरकार के आवेदन पर विचार करने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया। राज्य सरकार चाहती थी कि उच्चतम न्यायालय ये स्पष्ट कर दें कि उसने 11 जनवरी के आदेश में शराबबंदी कानून के तहत अग्रिम जमानत पर प्रतिबंध संबंधी प्रावधान की वैधता के बारे में कोई टिप्पणी नहीं की थी, लेकिन उच्चतम न्यायालय ने इस अनुरोध पर विचार करने से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामलों में गिरफ्तारी से पहले जमानत देने के पटना उच्च न्यायालय के आदेशों को मंजूरी दे दी थी। शराबबंदी कानून में अग्रिम जमानत का प्रावधान नहीं- बिहार सरकार प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एन. वी. रमण के नेतृत्व वाली पीठ ने 11 जनवरी को राज्य के कड़े शराबबंदी कानून के तहत आरोपियों को अग्रिम और नियमित जमानत देने को चुनौती देने वाली राज्य सरकार की 40 अपीलों को ये कहते हुए खारिज कर दिया था कि इन मामलों ने अदालतों को अवरुद्ध कर दिया है। पटना उच्च न्यायालय के 14-15 न्यायाधीश केवल इन मामलों की ही सुनवाई कर रहे हैं। इसके बाद राज्य सरकार ने यह कहते हुए उच्चतम न्यायालय का रुख किया कि उच्च न्यायालय द्वारा अग्रिम जमानत देने के उसके आदेश को बिहार निषेध और उत्पाद शुल्क अधिनियम की धारा 76 की वैधता के खिलाफ माना जा सकता है, जो अग्रिम या गिरफ्तारी से पहले जमानत देने पर रोक लगाता है। 'हमने आपके (बिहार) अधिनियम पर कोई टिप्पणी नहीं की' प्रधान न्यायाधीश ने याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए कहा, 'हमने आपके (बिहार) अधिनियम पर कोई टिप्पणी नहीं की है। अधिनियम की वैधता का मुद्दा एक अन्य पीठ के समक्ष लंबित है। अब आप मेरी टिप्पणियों का उपयोग करना चाहते हैं। क्षमा करें।' राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार ने कहा कि उच्च न्यायालय की कुछ पीठों द्वारा शराब के मामलों में अग्रिम जमानत दिए जाने के बाद एक पूर्ण पीठ का गठन किया गया था, जिसने कहा था कि अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती। उन्होंने ये दलील देने के लिए संविधान पीठ के एक फैसले का भी हवाला दिया कि अगर कानून विशेष रूप से इसे रोकता है तो अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती। '2017 में ही दी गई थी जमानत, अभी सुनवाई उचित नहीं' प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमण, न्यायमूर्ति ए. एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने कहा, 'क्या हमने आपके अधिनियम या प्रावधान की वैधता के बारे में कोई टिप्पणी की? हमने कोई टिप्पणी नहीं की है..हमने जमानत मिलने के बाद तीन-चार साल बीत जाने पर ही ध्यान दिया।' 11 जनवरी को जमानत के खिलाफ राज्य सरकार की अपील को खारिज करते हुए, उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि इन मामलों में उच्च न्यायालय द्वारा 2017 में ही जमानत दी गई थी, और इसलिए इसके लिए अभी याचिकाओं से निपटना उचित नहीं होगा। शराबबंदी कानून के तहत 20 हजार जमानत याचिका लंबित बिहार पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार पिछले साल अक्टूबर तक बिहार मद्य निषेध और आबकारी अधिनियम के तहत 3,48,170 मामले दर्ज किए गए और 4,01,855 गिरफ्तारियां की गईं। ऐसे मामलों में लगभग 20,000 जमानत याचिकाएं उच्च न्यायालय या जिला अदालतों में लंबित हैं।
from Hindi Samachar: हिंदी समाचार, Samachar in Hindi, आज के ताजा हिंदी समाचार, Aaj Ki Taza Khabar, आज की ताजा खाबर, राज्य समाचार, शहर के समाचार - नवभारत टाइम्स https://ift.tt/3o3UHl9
https://ift.tt/348onq1
No comments